Sunday, April 27, 2008

भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर का विकास


भारतीय भाषाओं में कंप्यूटरऔर विश्वजाल का विकास-विजय प्रभाकर कांबलेभारतीय भाषाओं में कंप्यूटर का विकासयूनेस्को की व्याख्या के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी एक शास्त्रीय, तकनीकी, प्रबंधकीय एवं अभियांत्रिकी शाखा है, जो सूचनाओं के तंत्र को विकसित करके उसका प्रयोग कंप्यूटर के माध्यम से करते हुए मानव और मशीन के बीच सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को सुदृढ़ और सबल बनाती है।सूचना प्रौद्योगिकी एक सरल तंत्र हैं जो तकनीकी उपकरणों के सहारे सूचनाओं का संकलन, प्रक्रिया एवं संप्रेषण करता है।भारत एक बहु भाषिक देश है। भारतीय संविधान में राजभाषा हिंदी सहित कुल 18 भाषाओं को स्थान प्राप्त हुआ है। भाषावार प्रांत रचना के फलस्वरूप विभिन्न प्रातों में अलग-अलग भाषाओं का प्रचलन बढ़ गया है। विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच हिंदी भाषा एक पुल हैं जिसके सहारे विभिन्न भारतीय भाषाओं में समन्वय निर्माण किया गया है। देश के अधिकांश भागों में धर्म, व्यापार, पर्यटन के क्षेत्र में हिंदी भाषा का समुचित प्रयोग किया जाता है।औद्योगिक क्रांति में मशीनों के सहारे उत्पादकता बढ़ी है और गुणवत्ता में एकरूपता आई है। 1947 में ट्रांज़िस्टर, 1971 में माइक्रोप्रोसेसर के विकास से कंप्यूटर का आकार छोटा और गणना शक्ति विशाल हो गई है। छोटे और अधिक शक्तिशाली कंप्यूटर के द्वारा व्यापार, शिक्षा, कार्यालय आदि अनेक क्षेत्रों में तेज़ी से विकास हुआ है। कंप्यूटर में हिंदी प्रयोग की बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखकर इलेक्ट्रानिकी विभाग ने "भारतीय भाषाओं के लिए टेक्नॉलॉजी विकास नामक परियोजना के अंतर्गत कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। संघ की राजभाषा नीति के अनुसार हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए सभी सरकारी अर्ध सरकारी, सरकारी उद्यमों में हिंदी भाषा का प्रयोग अनिवार्य किया गया है।किसी भी प्रजातंत्र में सरकारी अथवा निजी संघठन में जन भाषा का सम्मान करना फलप्रद होता है। सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सूचनाओं का माध्यम जनभाषा होना ज़रूरी है।इंटर नेट प्रणाली के महाशक्तिशाली तंत्र में भाषा का अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी, मंडारिन, फ्रांसीसी, जापानी, अरबी, स्पेनिश आदि भाषाएँ कंप्यूटर क्षेत्र में काफ़ी आगे बढ़ गई है साथ ही इनका प्रयोग भी। दुर्भाग्य से भारत में कंप्यूटर पर भारतीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार बहुत धीमी गति से हुआ है। आज हम दूरदर्शन पर जापानी या चीनी शेअर बाज़ार का दृश्य देखते हैं तब यह मालूम होता है कि वहाँ के सभी बोर्ड, सूचनाएँ जापानी या चीनी भाषा में प्रदर्शित होते हैं। हमारे देश में शेअर बाज़ार का दृश्य कुछ अलग होता है। आम भारतीय निवेशक अपनी पूँजी भारतीय अथवा विदेशी कंपनियों के शेअरों में केवल अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध प्रपत्र में ही प्रस्तुत करने के लिए विवश है। भाषाओं की इस असुविधा को हटाना ज़रूरी है। आर्थिक उदारीकरण के तहत भारत के बाज़ार विदेशी कंपनियों के लिए खुले किए जा रहे हैं। विदेशी कंपनियाँ भारतीय उपभोक्ताओं को आकर्षित करने हेतु भारतीय भाषाओं का बखूबी से प्रयोग कर रही हैं।सूचना प्रौद्योगिकी के तहत मशीनी अनुवाद एवं लिप्यंतरण सहज एवं सरल हो गया है। सी-डैक पुणे ने सरकारी कार्यालयों के लिए अंग्रेज़ी-हिंदी में पारस्पारिक कार्यालयीन सामग्री का अनुवाद (निविदा सूचना, स्थानांतरण आदेश, गज़ट परिपत्र आदि) करने हेतु मशीन असिस्टेड ट्रांसलेशन "मंत्रा" पॅकेज विकसित किया है। हिंदी भाषा में वैबपेज विकसित करने हेतु "प्लग इन" ( Plug in ) पॅकेज तैयार किया है जिससे कोई भी व्यक्ति/संस्था अपना वैबपेज हिंदी में प्रकाशित कर सकता है।अब वर्तमान स्थिति में वैबसाइट पर हिंदी इलेक्ट्रॉनिक शब्दकोष उपलब्ध है। इसी तरह अंग्रेज़ी तथा भारतीय भाषाओं में पारस्पारिक अनुवाद प्राप्त करने की सुविधा भी उपलब्ध है। कन्नड हिंदी के बीच "अनुसारक" सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। हिंदी और दक्षिण भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद सॉफ्टवेयर का विकास आई.आई.टी. कानपुर तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय में किया जा रहा है। अंग्रेज़ी हिंदी अनुवाद हेतु एम.सी.एस.टी. में समाचारपत्रों एवं कहानियों के लिए तथा सी-डैक पुणे में प्रशासनिक सामग्री के लिए विशेष सॉफ्टवेयर विकसित किए गए हैं। सी-डैक पुणे द्वारा निर्मित लीप-ऑफ़िस सॉफ्टवेयर में अंग्रेज़ी हिंदी शब्दकोष, अनुवाद, समानार्थी शब्दकोष, हिंदी में ई-मेल आदि अंग्रेज़ी भाषा के समकक्ष सभी सुविधाओं को प्रस्तुत किया गया है।कंप्यूटर एवं इंटरनेट के सहारे शिक्षा का प्रसार तीव्र गति से होने की संभावना बढ़ गई हैं। सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में यातायात की सुविधा के अभाव स्वरूप कई बच्चे स्कूल नहीं जा सकते। हर गाँव में पाठशाला का प्रबंध सरकार द्वारा किया जाता है लेकिन प्रशिक्षित शिक्षक एवं साधन सामग्री के अभाव फलस्वरूप शिक्षा का प्रसार बहुत धीमी गति से हो रहा है। आने वाले दिनों में हर स्कूल, महाविद्यालय में कंप्यूटर एवं इंटरनेट सेवा अनिवार्य हो जाएगी। एन.आय.सी पुणे ने वारणानगर गोकुल दूध डेअरी परिसर हेतु कंप्यूटर पर मराठी भाषा को स्थापित किया है। इसके द्वारा ग्रामीण किसान व छात्र अपनी भाषा में कंप्यूटर के सहारे दैनंदिन कामकाज करने में सक्षम हो गए हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी भाषा का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। माइक्रोसॉफ्ट, याहू, रेडिफ आदि विदेशी कंपनियों ने अपनी वैबसाइट पर हिंदी भाषा को स्थान दिया है। बी.बी.सी. ने भी पंजाबी, बंगाली के साथ-साथ हिंदी में वैबसाइट विकसित की है। सूचना प्रौद्योगिकी में ई-कॉमर्स, ई-गवर्नस क्षेत्र में हिंदी का विकास धीरे-धीरे हो रहा है। भारत सरकार के नेशनल सेंटर फार सॉफ्टवेअर टेक्नॉलॉजी ( NCST) ने सभी भारतीय भाषाओं की लिपि को कंप्यूटर पर स्थापित करने हेतु विशेष अभियान चलाया है। अमेरिकन माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने एन.सी.एस.टी के साथ एक संयुक्त योजना के तहत विश्व प्रसिद्ध विंडोज़ प्रणाली पर भारतीय भाषाओं को विकसित करने का कार्य शुरू किया है। एम.एस.ऑफ़िस सॉफ्टवेअर-2000 के दक्षिण एशियाई संस्करण में अब तमिल और देवनागरी लिपि को स्थापित किया गया है। भारत की आम जनता भारतीय भाषाओं में तथा दृश्य चित्र और स्पर्श के सहारे कंप्यूटर का प्रयोग सभी क्षेत्रों में कर सकेगी।सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने खार घर (नई मुंबई) स्थित छ: एकड़ भूमि में पच्चीस करोड़ राशि की लागत से भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेअर विकसित करने हेतु कार्य शुरू किया है। सी-डैक ने इंडबाज़ार डॉट कॉम ( Indbazaar.com) के सहयोग से हिंदी भाषा सीखने हेतु "लीला" नामक वैबसाइट उपलब्ध करवाई है। इस वैबसाइट के सहारे भारतीय भाषाओं की पढ़ाई ऑनलाइन मुफ़्त प्रदान की जा रही है। संस्कृत भाषा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व ध्यान में रखते हुए सी-डैक ने चारों वेद एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों को व्यास नामक वैबसाइट पर प्रकाशित किया है। रेडिफ, भारत मेल, जिस्ट मेल, अपना मेल, वी.एस.एन.एल., वैब दुनिया, जागरण आदि अनेक भारतीय एवं विदेशी साईट पर भी ई-मेल में हिंदी की सुविधा बहाल की गई है। सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिक उपकरणों का प्रसार आम जनता तक पहुँचाने हेतु सिम कंप्यूटर जैसे सस्ते उपकरण उपलब्ध करवाने हेतु सरकार प्रयत्नशील है।विज्ञान का अंतिम लक्ष्य साधारण ग़रीब व्यक्ति के आर्थिक सामाजिक विकास में सहायता करना है। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय युवकों ने अपनी प्रतिभा एवं अंग्रेज़ी भाषा पर प्रभुत्व के कारण अमेरिका के सिलीकॉन वैली में कार्यरत माइक्रोसॉफ्ट, पैंटियम, इंटेल आदि कंप्यूटर क्षेत्र में 50 प्रतिशत भागीदारी दर्ज़ है। विदेशी कंपनियों के सीमित लक्ष को ध्यान में रखते हुए भारतीय युवक कुछ कालावधि के लिए अनुबंध करके विदेश में चले जाते हैं। लेकिन बदली आर्थिक स्थिति में विदेशी कंपनियाँ भारतीय युवकों को अनुबंध भंग करके लौटा रहे हैं। विदेश में प्रशिक्षित कंप्यूटर इंजीनियर को आकर्षित करके भारतीय भाषाओं को सूचना प्रौद्योगिकी में विकसित करना चाहिए।भारत में नव-निर्मित सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने यह जान लिया है कि देश में डिजिटल विभाजन बढ़ गया है। इंटरनेट का प्रयोग कुछ सीमित अंग्रेज़ी जानने वाले अमीर लोगों तक सीमित है। ग्रामीण क्षेत्र में दूरसंचार नेटवर्क विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। इंटरनेट विकास हेतु दूरसंचार क्षेत्र को आधार बनाया गया है। नेशनल इंटरनेट बैकबोन (राष्ट्रीय इंटरनेट ढाँचा) विकसित करने में दूरसंचार की अहम भूमिका होगी। विदेश की तुलना में भारत में दूरसंचार घनता प्रति व्यक्ति दो या तीन है जबकि चीनी, जापान आदि एशियन देशों में यह प्रतिशत 15-20 तक है।भारत सरकार की नीति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र का राजस्व रिकार्ड भारतीय भाषा में विकसित किया जा रहा है। लैंड रिकार्ड नामक महत्वाकांक्षी योजना में हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ने की संभावना है। आने वाले दिनों में उत्तर भारत का साधारण पटवारी लैंड रिकार्ड हिंदी में कंप्यूटर पर तुरंत प्रस्तुत करेगा।कंप्यूटर की सहायता से विश्वविद्यालय, स्कूल में शिक्षा का प्रसार बढ़ाया जा सकता है। आज अमेरिका में एम.आई.टी. संस्था ने अपने सभी पाठ्यक्रम इंटरनेट पर मुफ़्त प्रस्तुत किए हैं। डिप्लोमा से लेकर पी-एच.डी, डी-लिट तक सभी पाठ्यक्रम विश्व के किसी भी कोने में बैठकर इंटरनेट द्वारा हासिल किए जा सकते हैं।स्कूली स्तर पर हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम प्रयोजन मूलक बनवाकर विज्ञान, गणित, वाणिज्य आदि विषयों के साथ तालमेल बैठाया जाए तथा यह सामग्री इंटरनेट पर जोड़ी जाए जिससे छात्र हिंदी पाठों को रुचि से पढ़े तथा हिंदी को व्यवहार में लाए। आंतरिक प्रतिभा का विकास करने हेतु विचार अभिव्यक्ति का माध्यम मातृभाषा में होना ज़रूरी है।इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबंधन में स्नातक स्तर पर हिंदी भाषा में जनसंपर्क प्रोजेक्ट अनिवार्य हो जिससे वे लोकभाषा हिंदी में सूचना संग्रह कर सकें।समाजोपयोगी कार्यक्रमों को आम लोगों को समझाने में समर्थ हो सकें। विचारणीय है कि यदि हमारे इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबंधक उपयुक्त टेक्नॉलॉजी और तकनीक को जनसामान्य को जितने प्रभावी ढंग और आसानी से समझा सकेंगे देश की उन्नति तेज़ हो जाएगी। देश की प्रगति और लोकभाषा में संप्रेषण समता के बीच सीधा संबंध है।भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के नीति निर्धारण में हिंदी भाषा को समुचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। भारत सरकार के कई मंत्रालयों एवं विभागों की साईट पर डायनैमिक हिंदी फॉन्टस् के अभाव स्वरूप साईट पढ़ने में दिक्कतें आ जाती है। हर बार अलग-अलग फांट डाउन लोड करना और उसे पढ़ना असुविधा जनक महसूस होता है। सभी सरकारी वैबसाइट द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेज़ी) होनी चाहिए लेकिन इस दिशा में बहुत कम प्रयास किए जा रहे हैं। अंग्रेज़ी वैबसाइट की तुलना में संबंधित हिंदी वैबसाइट बहुत संक्षिप्त एवं अनाकर्षक होती है। राजभाषा नियम के अनुसार सभी बैबसाइट हिंदी में तैयार करना अनिवार्य है।इंटरनेट सेवा के अंतर्गत ई-मेल, चॅटिंग, वाइस मेल, ई-ग्रीटिंग आदि बहुपयोगी क्षेत्र में हिंदी भाषा का विकास एवं संप्रेषण की संभावनाएँ अधिक है। स्पीच रिकग्नीशन ( Speech Recognition) यह एक ध्वनि आधारित कंप्यूटर सॉफ्टवेअर है। वर्तमान स्थिति में यह पैकेज अंग्रेज़ी भाषा में उपलब्ध है। सी-डैक यह सुविधा हिंदी में उपलब्ध करवाने हेतु अनुसंधान कर रही है। स्पीच रिकग्नीशन के सहारे अनपढ़ व्यक्ति भी कंप्यूटर के सामने बैठकर अपने विचार, शिकायत, सुझाव आदि बोलकर अपनी भाषा में संबंधित कंप्यूटर पर लिपिबद्ध कर सकता है। कंप्यूटर पर हिंदी भाषा ध्वनि, चित्र, एनीमिशन के सहारे विकसित की जा रही है।विश्वजाल पर में हिंदी और भारतीय भाषाओं का प्रसारसूचना प्राद्यौगिकी के बदलते परिवेश में हिंदी भाषा ने अपना स्थान धीरे-धीरे प्राप्त कर लिया है। आज हमारी मानसिकता में बदलाव लाने की ज़रूरत है। आधुनिकीकरण के दौर में भाषा भी अपना स्थान ग्रहण कर लेती है। हिंदी की उपादेयता पर कोई भी प्रश्न चिह्न लगा नहीं सकता। लेकिन संकुचित स्वार्थ के कारण भारतीय भाषाओं को नकारना हमारी मानसिक गुलामी की निशानी है।आज भले ही चीन, जापान, रूस, जर्मनी, अरब आदि अंग्रेज़ीतर देशों ने अपनी भाषा में विकास किया हो, लेकिन भारत में अगर राजभाषा, संपर्क भाषा, लोकभाषा को हम विकसित नहीं कर पाए तो यह हमारी हार होगी। जिस देश के नवयुवकों ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर प्रणाली को विकसित किया है, उसी देश की जनता को विदेश की और मुँह ताकना पड़ता है। इस स्थिति में बदलाव लाने की ज़रूरत है। भाषा का संबंध जिस तरह मन, बुद्धि से होता है, उसी तरह उसका संबंध हर व्यक्ति के रोजी रोटी तथा पारिवारिक विकास से भी जुड़ा होता है। इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी के नए तंत्र को समझ लेना चाहिए। विश्वस्तर के कई सॉफ्टवेयरों में अभी तक हिंदी का समावेश नहीं किया गया है।निम्नलिखित इंटरनेट साइट पर हिंदी सहित प्रमुख भारतीय भाषाओं के लिए उपयुक्त संपर्क सूत्र, ई-मेल, सॉफ्टवेयर आदि जानकारी उपलब्ध है।1. www.rajbhasha.nic.inराजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, भारत सरकार की इस साइट पर राजभाषा हिंदी संबंधित नियम, अधिनियम, वार्षिक कार्यक्रम, तिमाही, अर्धवार्षिक, वार्षिक, विवरण हिंदी सीखने के लिए लिला-प्रबोध, प्रवीण, प्राज्ञ पॅकेज आदि महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है। इस साइट पर उपलब्ध जानकारी सभी सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों, उद्यमों के लिए उपयुक्त हैं।2• www.rajabhasha.comइस साइट पर राजभाषा हिंदी संबंधित नियम, साहित्य, व्याकरण, शब्दकोश, पत्रकारिता, तकनिकी सेवा, हिंदी संसार, पूजा-अर्चना, हिंदी सीखें आदि संपर्क सूत्र उपलब्ध है।3• www.indianlanguages.comइस साइट पर हिंदी सहित सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के लिए साहित्य, समाचार-पत्र, ई-मेल, सर्च-इंजन आदि महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है।4• www.tdil.mit.gov.inसूचना पौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास (Technology Devalopment For Indian Languages) नामक इस साइट पर राजभाषा हिंदी विकास संबंधित तकनीकी जानकारी, साफ्टवेयर अनुसंधान रत संघटनों की जानकारी, भारत सरकार की योजना-भाषा-2010 आदि उपलब्ध है। इस साइट की इलेक्ट्रॉनिक पत्रिका 'विश्व भारत' अत्यंत उपयोगी है। इस साइट पर ऑनलाईन अनुवाद सेवा "आंग्ल भारती" जो आई.आई.टी. कानपुर ने प्रदान की है। भारतीय भाषाओं के लिए उपयुक्त तकनीकी जानकारी उपलब्ध है।5• www.cdacindia.comसूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने भारतीय भाषाओं के लिए इस साइट पर सॉफ्टवेयर, तकनीकी विकास संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है। हिंदी, मराठी, संस्कृत और कोकणी भाषाओं के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।6• www.dictionary.comइस साइट पर विश्व की प्रमुख भाषाओं के शब्दकोश, अनुवाद, समानार्थी शब्दकोश, वैब डिरेक्टरी, वायरलेस मोबाइल शब्दकोश तथा व्याकरण संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है।7. भारतीय वैब सर्च इंजन :www. searchindia.comwww.jadoo.comwww. khoj.comwww.iloveindia.comwww. 123india.comwww.samilan.comwww.samachar.comwww.search.asiaco.comwww.rekha.comwww.sholay.comwww.locateindia.comwww.mapsofindia.comwww.webdunia.comwww.netjal.comwww.indiatimes.com8• www.rosettastone.coइस साइट पर हिंदी सहित विश्व की सभी भाषाओं को सीखने के लिए इलेक्ट्रानिक सुविधाएँ उपलब्ध है। विश्व की 80 भाषाओं का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने हेतु पर्यटकों के लिए Gold Partner V6 नामक उपलब्ध है।9• www.wordanywhere.comइस साइट पर किसी भी अंग्रेज़ी शब्द का हिंदी समानार्थी शब्द तथा किसी हिंदी शब्द का अंग्रेज़ी समानार्थी शब्द प्राप्त किया जा सकता है।10. हिंदी में ई-मेल की सुविधाएं :www.epatr.comwww.mailjol.comwww.langoo.comwww.cdacindia.comwww.bharatmail.comwww.rediffmail.comwww.webdunia.comwww.danikragran.comwww.rajbhasha.nic.in11• www.bharatdarshan.co.nzन्यूजीलैंड में बसे मूल भारतीय लोगों ने इस साइट पर हिंदी साहित्य, कविताएँ, लघुकथाएँ, व्याकरण आदि सामग्री प्रस्तुत की है।12• www.boloji.orgपारिवारिक रंगारंग पत्रिका जिसमें हिंदी साहित्य, कला, संस्कृति आदि संबंधित संकलन उपलब्ध है।13• www.unl.ias.unu.eduटोकिया विश्व विद्यालय द्वारा विकसित इस साइट पर हिंदी सहित विश्व की 15 भाषाओं के विकास के लिए अनुसंधान कार्य जारी है। इस योजना का नाम Universal Net Working Languages रखा है, जिसमें सभी शब्दकोश तथा अनुवाद कार्य के सहारे विश्व शांति एवं एकता स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। विश्व की प्रमुख 15 भाषाओं में हिंदी को कंप्यूटर में विकसित किया जा रहा है।14• www.hindinet.comइस साइट पर हिंदी भाषा संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी, संपर्क सूत्र उपलब्ध है। हिंदी पाठकों, भाषा शास्त्री तथा छात्रों के लिए अत्यंत उपयुक्त साईट।15• www.microsoft.com/india/hindi2000विश्व प्रसिद्ध माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने हिंदी भाषा के लिए एम एस ऑफ़िस-2000 पॅकेज विकसित किया है। माइक्रोसॉफ्ट के अन्य उत्पादों में हिंदी को शामिल किया गया है।16• www.cstt.nic.inवैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार द्वारा विकसित इस साइट पर प्रशासनिक शब्दकोश सहित अनेक विषयों के तकनीकी शब्दकोश प्रस्तुत किए गए हैं। हिंदी,अंग्रेज़ी के लिए उपलब्धि शब्द-कोश कार्यालयों के लिए काफ़ी उपयोगी है।17• www.ciil.orgकेंद्रिय भारतीय भाषा संस्थान, भारत सरकार ने सभी भारतीय भाषाओं के विकास के लिए इस साइट का निर्माण किया है। सभी भारतीय भाषाओं में पारस्पारिक आदान-प्रदान के लिए यह संस्थान विशेष कार्य कर रहा है।18• www.gadnet.comइस साइट पर हिंदी भाषा का इतिहास, हिंदी की कविताएँ, गीत आदि साहित्य उपलब्ध है।19• www.nidatrans.comइस साइट पर हिंदी, अंग्रेज़ी, तमिल, तेलुगु भाषाओं के लिए अनुवाद, डीटीपी आदि सेवा उपलब्ध है।20• www.shamema.comइस साइट पर हिंदी, अंग्रेज़ी, उर्दू, पख्तु, पाश्तो भाषाओं के लिए समानार्थी शब्द प्राप्त किया जा सकते हैं।21• www.hindibhasha.comइस साइट पर हिंदी भाषा के लिए उपयुक्त जानकारी उपलब्ध है।
प्रस्तुतकर्ता - विजय प्रभाकर कांबले

मशीनी अनुवाद अँग्रेजी-हिंदी मशीनी (अनुवाद-विजय प्रभाकर कांबले)

अँग्रेजी-हिंदी मशीनी अनुवाद
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से परिवर्तन हो रहे हैं। कंप्यूटरीकरण के इस दौर में भाषा भी पीछे नहीं रह सकती। हिंदी भाषा ने भी कंप्यूटरीकरण के क्षेत्र में अपना स्थान ग्रहण किया है। आज हिंदी में कार्य करने के लिए अनेक सॉफ्टवेअर बाज़ार में उपलब्ध हैं। मशीनी अनुवाद क्षेत्र में अनेक शास्त्रज्ञ तथा भाषा विद्वान अनेक सालों से अनुसंधान कर रहे थे। अब भारतीय कंप्यूटर तंत्रज्ञों ने अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद करनेवाला तंत्र ढूँढ निकाला है।राजभाषा नियमानुसार हर सरकारी कार्यालय को धारा 3(3) के अंतर्गत जारी काग़ज़ात जैसे संकल्प, साधारण आदेश, अधिसूचनाएँ, प्रेस विज्ञप्ति, निविदा प्रारूप आदि द्विभाषा में जारी करना अनिवार्य है। संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति द्वारा इन काग़ज़ातों का कड़ाई से निरीक्षण किया जाता है। लेकिन आमतौर हर कार्यालय से ऐसे सभी काग़ज़ात सिर्फ़ अंग्रेज़ी में जारी किए जाते हैं। अंग्रेज़ी में जारी आदेश पर लिखा होता है, Hindi version will follow! दुर्भाग्य है कि ऐसे आदेश बहुत कम समय पर हिंदी में जारी किए जाते हैं। हर कार्यालय की अपनी मजबूरी रहती है जैसे हिंदी अधिकारी या हिंदी अनुवादक पदों का न रहना, सरकारी कामकाज़ में हिंदी का अपर्याप्त ज्ञान, हिंदी टाइपिंग का अभाव आदि।सी डैक नोएडा के नैचरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग विभाग ने ट्रांसलेशन सपोर्ट सिस्टम का सफल विकास किया है। ज्ञान भांडार अंग्रेज़ी भाषा में कैद रहेगा तो आम हिंदी जाननेवाला आदमी प्रतियोगिता में पिछड़ जाएगा। हिंदी अनुवादक की जटिल कार्यप्रणाली और टंकलेखन से अब आपको राहत मिल सकती है। समय मूल्यवान है। कम समय में महत्वपूर्ण सूचनाएँ भेजना ज़रूरी रहता है।सरकारी कार्यालय में राजभाषा हिंदी का पत्राचार बढ़ाना ज़रूरी है इसलिए मशीनी अनुवाद सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।सी-डैक नोएडा ने टी.स़ी.एस. (Translation Support System) सॉफ्टवेयर विकसित किया है। आवश्यकताएँ विंडो एक्स पी या विंडो 2000 जी यू आई सहायता सह कम से कम 64 एम बी रॅम/60 एम बी की जगह तथा पैंटियम आधारित प्रोसेसर की आवश्यकता है। ट्रांसलेशन सपोर्ट सिस्टम में निम्नलिखित खूबियाँ हैं-अनुवाद : टी. एस. एस. मेनू के ट्रांसलेशन पर क्लिक करने पर आप दो विंडोज(पैनल देख पाएँगे) इस में प्रयोक्ता के सामने अंग्रेज़ी और हिंदी अलग पैनेल दिखाई देंगे। बाईं और अंग्रेज़ी पैनल में फाइल, स्पेल चेक, ट्रांसलेट तथा 9 ट्रांसलेशन बटन होंगे। आप अंग्रेज़ी पाठ टाईप कर सकते हैं या आपके किसी फोल्डर से चुनकर रख सकते हैं। यह अंग्रेज़ी पाठ आप दाईं ओर की पैनल में हिंदी में अनुवाद के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। हिंदी अनुवाद आप किसी भी फ़ाईल में सेव आउटपुट बटन के द्वारा संग्रहित कर पाएँगे। हिंदी में अनुदित पाठ में कुछ नीले रंग का पाठ यह दर्शाता है कि इस पाठ में अनुवाद के कई विकल्प उपलब्ध है। इसमें सही अनुवाद को चुनना है। इसमें 9 बटन उपलब्ध हैं।1. फ़ाइल - इस बटन की सहायता से आपके कंप्यूटर स्थित किसी फ़ाइल को अनुवाद हेतु लिया जा सकता है।2. वर्तनी जांचक (Spell Checker) - बाईं ओर के पैनल में अंग्रेज़ी पाठ की वर्तनी जाँच की जा सकती है। अगर कोई शब्द उपलब्ध नहीं हो रहा है तो प्रयोगत: संबंधित शब्द की प्रविष्टि की जा सकती है। सजेस्ट, चेंज तथा इग्नोर द्वारा क्रमश: अनेक सुझाव, परिवर्तन तथा यथास्थिति बनाए रखने का विकल्प भी उपलब्ध है।3. अनुवाद - इस बटन पर क्लिक करते ही दाईं ओर की पैनल में हिंदी अनुवाद मिलना शुरू हो जाएगा। अनुवाद कार्य संपन्न होते समय पर्दे पर प्रोग्रेस बार दिखाई देगा।4. नो ट्रांसलेशन - अगर आप किसी अंग्रेज़ी पाठ का अनुवाद नहीं करना चाहते हो तो इस बटन द्वारा संबंधित पाठ को हायलाइट करके यथास्थित अंग्रेज़ी रख सकते हैं।5.सेव इन पुट - इस बटन द्वारा अंग्रेज़ी पाठ को वांछित स्थान पर सेव ऍज़ कर के रख सकते हैं।6. सेव आऊट पुट - इस बटन की सहायता से हिंदी में प्राप्त अनुवाद को आप किसी वांछित फ़ाइल में किसी भी जगह सेव ऍज करके रख सकते हैं।7. सिलेक्ट सेंटेंस - बहु विकल्प सुविधा के द्वारा आप किसी उचित वाक्य को चुन सकते हैं। इस बटन पर क्लिक करने पर एक विंडो में अनेक वाक्यों के विकल्प आपको प्राप्त हो जाएँगे। इसमें उचित वाक्य को हाइलाइट करके एडिटर में स्थानांतरित कर सकते हैं। इस मेन्यू में अन्य छ: बटन उपलब्ध हैं। जिसमें नेक्स्ट बटन, प्रीवियस बटन, वर्ड बटन, एक्सेप्ट बटन, एक्सेप्ट सेंटेंस तथा क्विट बटन उपलब्ध है।स्वीकृत वाक्य को हिंदी एडिटर के द्वारा वाक्य की रचना को कुछ जगह पर ठीक किया जा सकता है। इस एडिटर में सुशा फांट में टाइप किया जा सकता है। स्क्रीन पर सुशा की-बोर्ड-लेआउट ऑनलाइन उपलब्ध है। इस सॉफ्टवेअर में उपलब्ध शब्दकोश में प्रयोग करने वाला अपनी ओर से विशेष शब्द भी दर्ज़ कर सकता है। मशीन आधारित अनुवाद की इस सुविधा से राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम के लक्ष्य के अनुसार हिंदी का उपयोग बढ़ाया जा सकता है।अधिक जानकारी के लिए श्री वी.एन. श़ुक्ला, निदेशक, नैचरल लैगवेज प्रोसेसिंग डिवीजन, सी-डैक नोएडा, सी-56/1 सेक्टर-62, नोएडा 201307 फ़ोन 0120-2402551 एक्स्टेंशन 418 पर संपर्क कर सकते हैं।ई मेल - vnshukla@cadacnoida.com24 अप्रैल २००५
लेखक - विजय प्रभाकर काम्बले

Sunday, April 20, 2008

अनुवाद की राजनीति ( Politics In Translation )

Prakash kamble
JNU Hindi Translation

अनुवाद की राजनीति
( Politics In Translation )


किसी विद्वान् का मानना है कि “मानव जन्मत: राजनीतिक प्राणी है।“ यह राजनीति कभी खुले रुप में दिखाई देती है तो कभी गुप्त रुप में। कभी हिंसक रुप में तो कभी अहिंसक रुप में। कभी मौखिक तो कभी लिखित रुप से। व्यक्ति स्वंम के फायदे के लिए राजनीति करता है, तो कभी उसे मजबूरी में राजनीति का सहारा लेना पडता है। कई विद्वान इसे एक ही सिक्के के दो पहलू के रुप में देखते हैं। जिससे किसी को फायदा होता है तो किसी को नुकसान आज समाज का काफी छोटा अंश राजनीति के घेरे से छूटा हुआ दिखाई देता है। व्यवसाय, शिक्षण, साहित्य, समाज व्यवस्था जैसे समाज के विश्वस्त क्षेत्रों में भी राजनीति का असर जैसे ही बढा राजनीति के जडों ने अनुवाद के क्षेत्र को भी अपने घेरे में ले लिया। जिसमें अनुवाद का निर्माण कर्ता “अनुवादक” सबसे पहले अनुवाद के राजनीति का शिकार हुआ।
अनुवाद कोई सजीव या निर्जीव प्राणी नहीं हैं। अनुवाद एक प्रक्रिया है। जिसका उपयोग एक व्यक्ति एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में ले जाता है। इस प्रक्रिया में अनुवादक जान बूजकर पूर्ण ज्ञान के बावजूद अनुवाद को मूल अर्थ से दूर ले जाता है}। इस कूटनीतिक प्रक्रिय को अनुवाद की राजनीति कह सकते है। अनुवाद में यह क्रिया अनुवादक स्वंय करता है, या गलती से हो जती है। तो कई बार सामाजिक दबाव के कारण भी अनुवादक लक्ष्य पाठ के साथ खिलवाड करता है। साथ ही अन्य भाषिक पाठकों में मूल रचना के संदर्भ में भ्रांती निर्माण हो सकती है। अनुवाद की राजनीति का एक मूल उद्देश्य यह भी होता है कि अनुवाद के पाठकों में मूल रचना मे प्रति द्वेष निर्माण करना या अनुवाद करते समय निम्न क्षेत्रों में हेर-फेर करने की सम्भावना होती है।
१.भाषाशैली : - देशज, विदेशी, विशिष्ट जाति, स्थान के अनुसार भी भाषा की शैली बदलती हुई दिखाई देती है। अनुवादक जिस भाषा शैली को वरियता देगा उकी भाषा शैली वाले लोग अनुवाद से जुडेंगे। अनुवादक उन्हीं लोगों को जोडेगा जिसे वह जोडना चाहता है। या उसे कहा गया हो की किस शैली को अधिक वरियता देना है। जैसे :- पहले प्रेमचंद के कहानीयों का अनुवाद ठेठ या देहाती मराठी भाषा शैली में न करके साहित्यिक, शिक्षित समाज व्यवस्था की भाषा शैली में किया गया है।
२. मूल पाठ के कूख्य अंशोम् को छोडना : - या मूख्य अंशो का गलत अनुवाद करना। जैसे – दलित साहित्य के अनुवादों में कई अपशब्दों या गालियों को और वासनाधिन वर्णनों को हिंदी अनुवाद में कई जगह छोडा गया हैं। या उन्हें काट दिया गया हैं।
३.शब्द चयन : - शब्द एक खेल के साधन रुप वहीं व्यक्ति ले सकता है जिसके पास शब्दों का भंडार हो। जिसे प्रत्येक शब्द के अर्थ की संपूर्ण जानकारी हो। अनुवाद यह काम बखूबी कर सकता है। क्योंकि उसका काम शब्दों पर ही टिका हुआ है। उसे प्रत्येक शब्द का अर्थ जानना ही होता है। और यहीं से अनुवाद में शब्द चयन के राजनीति की प्रक्रिया भी शूरु होती है। किस शब्द के लिए अनुवाद करते समय दूसरे अर्थ वाल शब्द देना है या दो तीन शब्दों की जगह कहावत या लोकोक्ति का उपयोग करना है।
४. मूहावरे, कहावते, लोकोक्तियों का अर्थ बदल देना: - किसी भी मूहावरे, कहावतें, लोकोक्तियों के दो अर्थ होते है। एक तो सरल अर्थ होता हैं और दूसरा व्यंग्यार्थ या अस्पष्ट अर्थ जिसके शब्दों से अर्थ बदल क भिन्नार्थ निकलता है। अनुवाद को यह तय करना होता है कि दोनों में से किस अर्थ को लेना हैं अगर अनुवाद लेखक को जिस बात को कहना है उसी के आधार पर चलना हो तो वह ज्ञात अर्थ सही रुप में दे देता है अगर वह गलत अर्थ देता हैं तो वह अनुवाद की राजनीति कर रहा है।
५. सांस्कृतिक क्षेत्रों में भिन्नता निर्माण करना : - अनुवाद की राजनीति का सबसे प्रमुख अस्त्र सांस्कृतिक क्षेत्रों मे भिन्नता निर्माण करना यह मान सकते है। जिसमें मूल पाठ और अनूदित पाठ की संस्कृतिक में भिन्नता दिखाई जाती है। जिससे मूल पाठ और अनूदित पाठ के पाठकों पर इसका विपरित परिणाम दिखाई है। यह अनुवाद उन्हीं पाठकों को अधिक पसंद आयेगा जिसके सांस्कृतिक पक्ष अनुवाद से जुडते हो। अनुवादक यह कार्य कई बार अनजाने में भी करता हैं।
६.भाषाई स्तर में भिन्नता निर्माण करना : - भाषाई स्तर का उपयोग अधिकतर संप्रेषण के रुप में होता है। दो व्यक्तियों के बीच में किस स्तर में संप्रेषण हुआ उस संप्रेषण का अनुवाद किस भाषा स्तर में अनुवादक करना चाहता है या करता है उससे दो व्यक्तियों के वीच के सामाजिक सतर एवं आर्थिक सतर की पहचान होगी।
७.संकेत स्थलों में भिन्नता दिखाना : - संकेत स्थल भषा एवं संस्कृति के द्योतक होते है जिससे दो भाशाओं एवं संस्कृति की पहचान होती है अनुवादक को ऎसे संकेतों का अनुवाद नहीं करना चाहिए। या करें तो दोनों की कोटियाँ एवं क्षेत्र समान हो। अगर वह एसा नहीं करता तो जरुर वह कुछ और करने की सोच रहा है।
८.नाम, सर्वनाअम, और क्रिया रुपों में भिन्नता दिखाना।
९. व्याकरणिक शब्दों में भिन्नता दिखाने से भी अनुवाद में भिन्नता निर्माण होती है।
१०.वैचारिक (विचार) के स्तर में भिन्नता दिखाना।
११.वर्तमान काल, भविष्य काल और भूतकाल के वाक्यों में जान बूजकर भिनाता
निर्माण करना।
१२.शब्दों और वाक्यों के लिंगों मे परिवर्तन करना। ( जैसे – स्त्री लिंग का
पुलिंग करना)
अनुवाद के समय जान बुझकर बदलाव करना और पाठक को मूल पाठ के लक्ष्य से दूसरी ओर ले जाना अनुवाद की राजनीती का प्रमूख लक्ष्य होता है। जिसे पाठक तभी समझ पायेगा जब वह मूल पाठ और अनूदित पाठ को पढेगा। यह कार्य एक अनुवादक दूसरे अनुवादक अनुवाद पढकर। अनुवाद की राजनीति का पोल खोल सकता है। सामान्य पाठक यहीं समझता हैं कि अनुवादक ने अनुवाद सही रुप में नही किया। जिसके कारन वह बाकी अनुवादों को भी गलत या अनुवाद निम्न स्तर के होते हैं। यह भावना अपने मन में बना लेता है। अगर अनुवाद अनुवाद की राजनीति करने में सफल होता है, तो पाठक के मन में मूल पाठ के प्रति द्वेश निर्माण हो सकता है। जिससे मूल रचना के प्रति समाज में असंमजस की स्तिथि निर्माण हो जाती है।
अनुवाद में व्यवसाय के रुप में किया जाने वाला अनुवाद या जल्द बाजी में किए जाने वाले अनुवादओं में हुए भूलों को हम माफ भी कर सकते है या ऎसे अनुवाद भूलों अथवा अज्ञान का नमूना पेश करते है। लेकिन सोच समझकर की गई भूलों को कैसे सुधारे। जो पाठ अनुदित होकर प्रकाशित हो जाता है उसके बाद वह पाठ अनुवादक का नहीं रह पाता और उसे फिर से उस पाठ को प्रकाशित करने में कई वर्षों तक इंतजार करना पड सकता है। कई अनुवादक मूल पाठ का अनुवाद इसी लिए करते है कि अनुवाद से कुछ धन समाया जाए। लेकिन कुछ अच्छे अनुवादक पैसे कम मिलने वाले है इस सोच से भी अनुवाद ठिक से नहीं करते। इस क्रिया में प्रकाशक भी कई बार शामिल होते हैं। वे अनुवादक पर दबाव डालते हैं कि निश्चित समय, और कम से कम पृष्ठों में अनुवाद होना चाहिए ? अनुवाद के लिए इतने ही रुपए मिलेंगे ? इन सवालों के कारण भी अनुवादक अनुवाद करने से पुर्व कुछ सोचकर ही अनुवाद हाथ में लेता है। अनुवादक केवल गलत अनुवाद करने के लिए या अनुवाद में हेर-फेर करके ही राजनीति नहीं करता तो वह किसी समाज, व्यक्ति, या लेखक की प्रतिष्ठा बढाने के लिए या घाटाने के लिए राजनीति कर सकता है।
अब अनुवाद की ओर देखा जाए तो आज अनुवाद उस भूमिका में नहीं रहा जिसे केवल शब्द से शब्द अनुवाद की प्रक्रिया में बांध कर रहना पडे। आज कई एसे अनुवादक विद्वान है जो अनुवाद में अनुवाद की राजनीति का मंत्र अपनाते है। यह क्रिया या खेल सभी अनुवादकों या अनुवाद पहली बार कार्य कर रहें अनुवादक नहीं कर सकतें। यह कार्य एक कुशल या अनुभव पूर्ण अनुवादक ही कर सकता है।

Friday, April 18, 2008

अनुवाद संबंधित पुस्तकों की सूची


अनुवाद संबंधित पुस्तकों की सूची


Prakash Kamble
JNU – Hindi Translation
हिंदी अनुवाद के लिए कई हिंदी के विद्वानों ने हिंदी अनुवाद के सिद्धांत पर एवं साहित्यिक अनुवाद पर कई किताबों को प्रकाशित किया है। जिसका उपयोग शैक्षणिक स्तर पर तो किया जाता ही हैं साथ ही कार्यालयों के लिए भी यह किताबें अत्यंत उपयोगी सिध्द हो रहीं है। जहाँ तक हिदी में मशीनी अनुवाद के किताबों की बात हैं। इनकी संख्या काफी कम है या कहा जाए तो नहीं के बराबर हैं। मशीनी अनुवाद में कार्य कर रहें भारतीय विद्वान भी अपनी किताब अधिकतर अंग्रेजी में ही लिखते हैं। इसका एक कारण किताब की यूनिर्व्हसलता कों कायम रखने के लिए ही अधिकतर विद्वान अंग्रेजी में अपनी किताब प्रकाशित करते हैं। लेकिन कुछ किताबों को हम हिंदी में देखते हैं। जिसकों हम निम्न रुप से हम देख सकते हैं।
१. अंग्रेजि – हिंदी अनुवाद व्याकरण
- सूरजभान सिंह
२. कंप्यूटर अनुवाद (भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी और अनुवाद)
- भारतीय अनुवाद परिषद की अनुवाद पत्रिका
मशीनी अनुवाद विशेषांक
३.Natural language processing
- Akshar bharati
१. अनुवाद कला सिध्दांत और प्रयोग
- कैलाश चंद्र भाटिया
२. अनुवाद सिध्दांत की रुपरेखा
- सूरेश कुमार
३. संस्कृत अनुवाद व्याकरण
- शिवाधार सिंह
४. अनुवाद शिल्प समकालिन संदर्भ
- कुसुम अग्रवाल
५. अनुवाद शतक विशेषांक ( भाग - १ )
६. अनुवाद शतक विशेषांक ( भाग - २ )
७. अनुवाद भाषाएं समस्याएं
- डॉ.विश्वनाथ अय्यर
८. राजभाषा हिंदी और अनुवाद
९. प्रयोजन मूलक हिंदी और अनुवाद
१०. मशीनी अनुवाद
- वृषभ प्रसाद जैन
११. अनुवाद सिध्दांत
- डॉ.भोलानाथ तिवारी
१.Computer Aided Translation Technology
- Lynne Bowker
२.Translation and Understanding
- Shilendra Kumar shing
कुछ अनुवाद संबंधित पत्र-पत्रिकाएं
१. अनुवाद शतक
- भारतीय अनुवाद परिषद
२. Translationtoday
३. अनुवाद
४. भाषा
५. Biblio
६. Internation Translation

Thursday, April 17, 2008

मशीनी अनुवादा में कार्य कर रहें प्रमुख संस्थान

Anglabharati (IIT-K and C-DAC, N) Eng-IL (Hindi) General (Health) Transfer/Rules
(Pseudointerlingua) Post-edit
1 Anusaaraka (IIT-K and University of Hyderabad) IL-IL (5IL->Hindi) [5IL: Bengali, Kannada, Marathi, Punjabi, and Telugu] General (Children) LWG mapping/PG Post-edit
2 MaTra (C-DAC, M) Eng-IL (Hindi) General (News) Transfer/Frames Pre-edit 3 Mantra
(C-DAC, B) Eng-IL (Hindi) Government Notifications Transfer/XTAG Post-edit
4 UCSG MAT (University of Hyderabad) Eng-IL (Kannada) Government circulars
Transfer/UCSG Post-edit
5 UNL MT (IIT-B) Eng, Hindi, Marathi General Interlingua/UNL Post-edit
6 Tamil Anusaaraka (AU-KBC, C) IL-IL (Tamil-Hindi) General (Children) LWG mapping/PG
Post-edit
7 MAT (Jadavpur University) Eng-IL (Hindi) News Sentences Transfer/Rules Post-edit
8Anuvaadak (Super Infosoft) Eng-IL (Hindi) General [Not Available] Post-edit
9 StatMT (IBM) Eng-IL General Statistical Post-edit
10ASR, M Academy of Sanskrit Research, Melkote
AU-KBC, C Anna University s K. B. Chandrasekhar Research Centre, Chennai
C-DAC, B Centre for Development of Advanced Computing, Bangalore
C-DAC, M Centre for Development of Advanced Computing, Mumbai
(Erstwhile NCST)
C-DAC, N Centre for Development of Advanced Computing, Noida
(Erstwhile Electronics, Research and Development Centre of India)
C-DAC, MH Centre for Development of Advanced Computing, Mohali
(Erstwhile CEDTI)
C-DAC, T Centre for Development of Advanced Computing, Thiruvananthapuram
(Erstwhile Electronics, Research and Development Centre of India)
5
CEERI, D Central Electronics Engineering Research Institute, Delhi
CIIL, M Central Institute for Indian Languages, Mysore
IBM International Business Machines, U.S.A.
IIT-B Indian Institute of Technology, Mumbai
IIT-K Indian Institute of Technology, Kanpur
ISI-K Indian Statistical Institute, Kolkata
JNU, ND Jawahar Lal Nehru University, New Delhi
LTRC, IIIT, H Language Technologies Research Center, IIIT, Hyderabad
TDIL Technology Development for Indian Languages

“हिंदी गद्य साहित्य की नई विधाओं का विकास और हिंदी अनुवाद”

दि :-24 /०४/०८
kamble prakash abhimannu
Hindi Translation
JNU- N.Delhi

“हिंदी गद्य साहित्य की नई विधाओं का विकास और हिंदी अनुवाद”

प्रस्तावना : -
केवल साहित्य ही नहीं समाज, संस्कृति, साहित्य, भाषा, व्यवसाय एवं अनुवाद से जुडे अधिकतर विधाओं के विकास में अनुवाद का ही योगदान महत्वपूर्ण रहा हैं। आज भी आधुनिकता और प्रौद्योगिकी के युग में भी अनुवाद यह भूमिका बखूबि निभा रहा हैं।
हिंदी में नई साहित्यिक विधाओं के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका किस प्रकार महत्व पूर्ण रही इसे हम केवल अनुवाद की भूमिका को ध्यान में रखते हुए निम्न रुप से देख सकते है।
पाश्चात्य सहित्य के विकास के साथ ही हिंदी साहित्य की विधाओं का विकास भी होता गया। इसका एक कारण यह था की इस दौरान अधिकतर जगह अनुवाद की स्त्रोत भाषा अंग्रेजी थी। विश्व के किसी भी साहित्य का अनुवाद पहले अंग्रेजी में होता फिर अंग्रेजी के माध्यम से अन्य भाषा जैसे हिंदी अनुवाद होता था। हिंदी साहित्य में न केवल पाश्चात्य साहित्य में विकसित साहित्यिक विधाओं का ही विकास हुवा बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्यक विधाओं का भी विकास अनुवाद के माध्यम से हिंदी की साहित्यिक विधाओं में दिखाई दिया । विशेष कर हम उन्हीं विधाओं पर अधिक विचार करेंगे जिसमें अनुवाद का महत्व अधिक रहा। जिसमें मुख्य रुप से निम्न विधाओं को प्रमुख रुप से दिखा जाता हैं। १.नाटक २.उपन्यास ३.निबंध ४.कहानी ५.संस्मरण ६.आत्मकथा ७.जीवनी ८.समीक्षा ९.इंटरव्यूव साहित्य (साक्षात्कार) १०.यात्रा-साहित्य ११.डायरी-साहित्य १२.रेखाचित्र १३.एकांकी १४.पत्र-साहित्य १५.काव्य आदि। साहित्यिक विधाओं के विकास पर बारिकी से अनुसंधान कीया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा की हिंदी साहित्य में इन नई साहित्यिक विधाओं के विकास में अनुवाद ने सबसे महत्व पूर्ण भूमिका निभाई हैं। परंतू आज भी अनुवाद को उसके कार्य के अनुसार हिंदी साहित्य में महत्व नहीं दिया जाता फिर भी अनुवाद अपना कार्य निरंतर रुप करता रहेगा।
उपन्यास : -
इसमें कोई संदेह नहीं की उपन्यास हिंदी साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। इसका एक कारण यह भी है कि हिंदी उपन्यास के विकास की प्रक्रिया में न केवल हिंदी के मौलिक ग्रंथो का योगदान रहा बल्कि पाश्चात्य देशों मे लिखे महानतम ग्रंथो के अनुवाद हिंदी उपन्यास के विकास में मिल का पत्थर साबित हुए। जितने मौलिक उपन्यास लिखे जा रहें थे उसी के अनुपात में हिंदी अनुवाद का कार्य भी समान रुप में चल रहा था। न केवल पाश्चात्य बल्कि भारतीय भाषाओं से भी हिंदी में कई उपन्यासों का अनुवाद हो रहा था। बंकिमचंद्र, रवींद्रनाथ, बाबू गोपालदास, रमेश्चंद्रदत्त, हाराण्चंद्र, चंडीचरण सेन, शरद बाबू, चारुचंद, आदि बंग उपन्यासकारों के उपन्यासों का अधिक अनुवाद हुवा।
कुछ उर्दू और संस्कृत उपन्यासों के अनुवाद भी हुए जैसे – ’ठगवृतांतमाल’ ’पुलिसवृतांतमाल’ ’अकबर’ ’चित्तौरचातकी’ ’इला’ ’प्रमीला’ ’जया’ और ’मधुमालती’आदि उपन्यासों का अनुवाद किया।उदाहण स्वरुप हम कुछ उपन्यासों के अनुवाद की छोटी सूची हम निम्न रुप से देख सकते है।
अनु.क्र
मूल lekhak
उपन्यास
अनुवादक
१.
रमेश्चनद्र
बंग विजेता
गदाधरसिंह(१८८६)
२.
बंकिमचन्द्र
दुर्गेशनन्दिनी
गदाधरसिंह(१८८२),राजसिंह,इंदरा रानी, युगलांगुर,प्रतापनारायण मिश्र
३.
दामोदर मुकर्जी
मृण्मयी
राधाचरण गोस्वामी
४.
स्वर्ण कुमारी
दीप निर्वाण
मुंशी हरितनारायण लाल

इतने ही नहीं अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रशियन, जैसी पाश्चात्य भाषाओं के साथ ही तमिल, तेलगू, मरठी आदि भारतीय भाषाओं से भी अनुवाद प्रस्तूत हुए। जिनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण हैं।

नाटक : -
बाबू रामकृष्ण वर्मा द्वारा ’वीरनार’,’कृष्णाकुमा’ और ’पद्मावत’ इन नाटकों का अनुवाद हुवा। बाबू गोपालराम ने ’ववी’, ’वभ्रुवाह’, ’देशदशा’, ’विद्या विनोद’ और रवींद्र बाबू के ’चित्रांगदा’ का अनुवाद किया, रुपनारायण पांण्डे ने गिरिश बाबू के ’पतिव्रता’ क्षीरोदप्रसाद विद्यावियोद के ’खानजहाँ’ दुर्गादास ताराबाई, इन नाटकों के अनुवाद प्रस्तुत किए।
अंग्रेजी नाटकों के अनुवाद भी इसी कालखंड मे निरंतर रुप से चल रहे थे। जिन में ’रोमियो जूलियट’ का ’प्रेमलिला’ नाम से अनुवाद हुवा। ’ऎज यू लाईक इट’ और ’वेनिस का बैक्पारी’, उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी के भाई मथुरा प्रसाद चौधरी ’ए मौकबेथ’ का ’साहसेंद्र साहस’ के नाम के अनुवाद किया। हैमलेट का अनुवाद ’जयंत’ के नाम से निकला जो वास्तव में मराठी अनुवाद से हिंदी मे अनूदित किया गया था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में नाटकों का अधिक अनुवाद हिंदी में दिखाई देता है। विद्यासुंदर (संस्कृत “चौरपंचाशिका” के बंगला-संस्करण का अनुवाद), रत्नाअवली, धनंजय विजय (कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का), कर्पूरमंजरी (सट्टक, के संचन कवि-कृत नाटक का अनुवाद) अगर हिंदी नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में किन अनूदित नाटकों ने महत्व पूर्ण कार्य किया तो उसे हम निम्न रुप से देख सकते है। कुछ नाटकों के अनुवाद दो अनुवादकों ने भी किए है।
“संदर्भ”[1]
अनु.क्र
मूल नाटककार
नाटक
अनुवादक

भवभूति
उत्तररामचरित
देवदत्त तिवारी(१८७१),
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८६)

भवभूति
मालतीमाधव
लाला शालीग्राम(१८८६),लाला सीताराम (१८९५),

भवभूति
महावीरचरीत
लाला सीताराम(१८९८)

कालिदास
अभिज्ञानशाकुन्तल
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८८)

कालिदाक
मालविकाग्निमित्र
लाला सीताराम (१८९८)

कृष्णमित्र
प्रबोधचन्द्रोदय
शीतलाप्रसाद(१८७६), आयोध्याप्रसाद चौदरी १८८५

शुद्रक
मृच्छकटिक
गदाअधर भट्ट(१८८०),लाला सिताराम

भट्ट नारायण
विणीसंहार
ज्वालाप्रसाद सिंह(१८९७)

हर्ष
रत्नावली
देवदत्त तिवारि(१८७२),
१०
माइकेल मदुसूदन
पद्मावती
बालकृष्ण भट्ट(१८७५)
११
माइकेल मदुसूदन
शर्मिष्ठा
रामचरण शुक्ल(१८८०)
१२
माइकेल मदुसूदन
कृष्णमुरारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१३
मनमेहन वसू
सती
उदितनारायण लाल(१८८०)
१४
राजकिशोर दे
पद्मावति
रामकृष्ण वर्मा(१८८६)
१५
द्वारिकानाथ गांगुली
विर नारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१६
शेक्सपियर
मरचेंट ऑफ् वेनिस
“वेनिस का व्यापारी” – आर्या १८८८
१७
शेक्सपियर
द कॉमेडी ऑफ् एरर्स
“भ्रमजालक” – मुशी इमदाद अली, “भूलभुलैया” – लाला सिताराम
१८
शेक्सपियर
ऎज यू लाइक इट
“मनभावन” – पुरोहित गोपीनाथ, १८९६
१९
शेक्सपियर
मैकबेथ
“साहसेंद्र साहस” मथुराप्रसाद उपाध्याय,१८९३
२०
एडीसन
केटो
कृतान्त(१८७६)
संस्कृत नाटकों का हिंदी में अनुवाद होता रहा हैं। संस्कृत नाटकों के अनुवाद में रायबहादुर लाला सीताराम बी.ए. का कार्य अधिक महत्व पूर्ण रहा। नागानंद ने भी, मृच्छकटिक, महावईरचरित, उत्त्ररामचरित, मालतीमाधव, मालविकाग्निमित्र आदि नाटकों का अनुवाद सफल रुप से किया। यह नाटक अनुवाद होकर भी इन नाटकों की भाषा सरल और सादी और आडंबर शून्य हैं। पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र ने वेणीसंहार और अभिज्ञान शकुंतला के हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए। सत्य नारायण कविरत्न ने भहूति के उत्तर राअमचरित का अनुवाद किया और मालति माधव का अनुवाद भी किया। इस प्रकार अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत बंगाला अदि भाषाओं से हिंदी मे भारि मात्रा में अनुवाद किया। जिसने हिंदी नाटक साहित्य के विकास में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। आज भी भारी मात्रा में मराठी, गुजराती, पारसी आदि अन्य भारतीय भाषाओं से हिंदी में नाटकों का अनुवाद हो रहा हैं।
मौलिक हिंदी नाटक और अनूदित हिंदी नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हिंदी नाटकों के अनुवाद की भूमिका अधिक सशक्त रुप से सामने आ सकती है। जिसमें शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद को अधिक सफलता मिली। हिंदी नाटकों के तकनिक के विकास में शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद का अधिक उपयोग हुवा। साहित्यिक अनुवादों में हिंदी में अधिकतर नाटकों का अनुवाद हुवा है।
२. निबंध : -
निबंध यह विधा हिंदी साहित्य में पूर्ण रुप से स्वर्जित सम्पत्ति है। यह सर्वता खड़ी बोली गद्य कि देन है साथ ही इसकी प्रेरणा पश्चिमी है। हिंदी गद्य का यह आधुनिक रुप है। फ्रांस के “मिकेल मौंटेन” को निबंध साहित्य के जन्मदाता माने जाते है। हिंदी गद्य साहित्य के विकास के समय अंग्रेजी में भी निबंध विधा अधिक विकसित नहीं हुई थी इस कारण इस विधा का विकास हिंदी में मौलिक रुप में ही अधिक गति से हुआ।
निबंध लेखन के प्रारंभिक काल में ही निबंध को रास्ता दिखलाने वाले दो प्रमुख ग्रंथ हिंदी में अनुवाद होकर प्रकाशित हुए।
१. बेकन विचार रचनावली (अंग्रेजी के पहले निबंधकार) के
अंग्रेजी निबंधोंका अनुवाद।
२. विष्णूशास्त्री चिपलूणकर द्वारा लिखित “निबंधमालादर्श” मरठी से हिंदी में अनुवाद किया गया।
यह दोनो भी ग्रंथ अपनी भाषा के महत्व पूर्ण ग्रंथ हैं। यह दोनों ग्रंथ हिंदी निबंध के विकास में महत्व पूर्ण रहें। इसके बाद कई हिंदी साहित्यकारों ने पत्र-पत्रिकाओं में मौलिक निबंध लिखना आरंभ किया। लेकिन आज भी कई भाषाओं से हिंदी में निबंधों का अनुवाद किया जाता हैं।
३. यात्रा साहित्य : -
मनुष्य हमेशा से ही घुम्मकड प्रवृत्ति का रहा है। लेकिन केवल एक जगह से दूसरी जगह धुमने से यात्रा साहित्य नहीं लिखा जाता। कुछ यात्रा प्रेमी या घुम्मकड अपनी –अपनी मनोवृत्ती में साहित्यिक भी होते हैं। जो निसंग भाव से भ्रमण भी करते है और निसर्ग, भिन्न-भिन्न सम्स्कृतियों, समाज, धर्म, आदि से प्रेरणा लेकर साहित्य काभी निर्माण भी करते हैं। जिसमें फाहियान, हेंगसीग, इत्संग, इब्नबतूता, अल्बरुनी, मार्को पोलो, हैवर्नियर आदि को प्रमूख रुप से देख सकते हैं।
इन पाश्चात्य यात्रा वृतांतो का भारी मात्रा में हिंदी में अनुवाद हुवा। जिससे हिंदी में यात्रा साहित्य के विकास में योगदान दिया।
४. डायरी साहित्य : -
डायरी साहित्य विधा हिंदि को पाश्चात्य देशों की देन हैं जिसे भारतीय लेखकोंने अपनी-अपनी शैली में ढाल कर अपनाया है। “महात्मा गांधी के प्रभाव से भारत में डायरी लेखन का प्रवर्तन जीवन साधन के माध्यम के रुप में हुआ।”[2] महात्मा गांधी की डायरी का हिंदी अनुवाद श्रीराम नारायण चौधरी द्बारा अनूदित होकर हिंदी साहित्य में आया। जिसके बाद इस डायरी का अनुवाद अन्य भारतीय और पाश्चात्य भाषाओं में भी होता रहा। इससे कुछ पहले टॉलस्टाय की डायरी का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुवा था। जिससे प्रेरणा लेकर अनेक हिंदी लेखकों का झुकाव कलात्मक डायरी लेखन की ओर हुआ। इसके उपरांत “महादेव भाई की डायरी” का मूल गुजराती से हिंदी में अनुवाद हुवा है। इसी प्रकार की एक डायरी “मनुबहन गांधी” नामक डायरी गुजरती से हिंदी में प्रकाशित हुई।
डायरी लेखन की शैली में विशिष्टता लाने का कार्य भी अनुवाद ने ही किया जिसमें विषय वस्तू के गंभीर विश्लेषण और विस्तार की दृष्टि से “भारत विभाजन की कहानी” महत्वपूर्ण डायरी है। जो मूल रुप में अंग्रेजी ‘maim lik gav ahi’ अहि हिंदी में यह १९४७ में ’एलेन केंपबेल जॉनसन’ ने लिखी है जो लॉर्ड माउंटबेटन के प्रेस अटैची थे।
देखा जाए तो अनुवादने हिंदी साहित्य में डायरी लेखन विधा को हिंदी साहित्य में एक साहित्यिक विधा के रुप में प्रतिस्थापित करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई है।

५. इंटरव्यू साहित्य (साक्षात्कार) : -
एक साहितिक विधा के रुप में रेखाचित्र और रिर्पोताज की तरह हिंदी को यह साहित्यिक विधा पश्चिम की ही देन है। हिंदी में इस विधा के विकास का श्रेय ’श्री चंद्रभान’ को जाता है, लेकिन हिंदी में इस विधा का सूत्रपात ’पं.बनारसीदास चर्तुवेदी’ को जाता है। “आज विविध क्षेत्रों की पत्र-पत्रिकाओं में और स्वतंत्र पुस्तकों द्वारा हिंदी में इंटरव्यूव साहित्य से परिचित हो चुका है और अनुदित हो रहा हैं।”[3] हिंदी में इसी विधा को साक्षात्कार ’भेंट’ ’भेटवार्ता’ के रुप में देखा जाता है। हिंदी में साक्षात्कार केवल साहित्य में ही अनुवाद नहीं हो रहें बल्कि टि.व्ही चैनलों पर भी व्हिडिओ रुप में भी मोटे रुप में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं अनुवाद हो रहें है।
[1] हिंदी साहित्य का इतिहास पृश्ठ - ४८२
[2] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
[3] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
३. हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ३०९
६. एकांकी : -
यह कहना भ्रामक होगा की भारतीय साहित्य में एकांकी नहीं थी। “जैसे हम देखते है उत्तर भारत की रामलीला, बंगाल की यात्रा, ब्रजभूमी की रासलीला, महराष्ट्र की ललित कला, गुजरात का बवाई, राजस्थान का कठपुतली और नौटंकी के रुपों को देखा जा सकता हैं।”[1] संस्कृत में तो एकांकि के छह रुप दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रुप से हिंदी में एकंकी का अधिक विकास भारतेंदु युग में हुआ। जिसने राष्ट्रीय एकता की धारा, पुराणिक धारा, हास्य, व्यंगप्रधान धारा निर्माण हुई।
इसी धारा में हिंदी के मौलिक रचनाकारों ने भी एकांकीयों का अनुवाद किया जिसमें प्रेमचंदजी का नाम भी आता है। हिंदी एकांकी के विकास काल में जी.पी श्रीवास्तव ने ’मौलियर’ के कई एकांकीयों के कई सफल अनुवाद किये। श्रीक्षेमानंद राहत ने टॉल्सटाय के कुछ छोटे एकांकीयों का अनुवाद किया। जिसमें “कलवार् की करतूत” मुख्य है। श्री रुपनारायण पांण्डेय ने रविबाबू के एकंकियों का अनुवाद अधिक किया। द्विवेदी युग में एकांकी के तकनीक में अधिक विकास हुवा जिसका एक कारण अंग्रेजी से अधिक अनुवाद होने लगे थे। इन अनुवादों का प्रभाव हिंदी के मौलिक एकांकीयों के तकनीक में अधिक विकास करने के लिए हुवा। “सृष्टी का आरंभ” जार्ज बर्नाड शा का अनुवाद है। एकंकी का विकास भारतेंदू युग के साथ ही द्विवेदी युग में भी हुआ जिसमें अनुवादकों का अधिक योगदान रहा। द्विवेदी युग के प्रमुख रचनाकारों में जी.पी श्रीवास्तव का नाम पहले आता है। जिन्होंने अधिकतर एकांकीयों का अनुवाद किया हैं। हिंदी एकांकी के विकास में १९३० का वर्ष महत्व पूर्ण रहा। इस वर्ष में कई अंग्रेजी एकांकीयों का हिंदी में अनुवाद हुआ। जिससे अंग्रेजी एकांकी ने हिंदी एकांकी को अनुवाद के माध्यम से अपने रंग में ढाला।

२. पत्र साहित्य : -
पत्र-साहित्य में पाश्चात्य साहित्य में अधिकतर विद्वानों ने लिखे पत्रों को संकलन कर उन्हें प्रकाशित किया जाता था। हिंदी में भी यह प्रथा चली कई विद्वानों के पत्रों के संकलन प्रकाशित हुए। हिंदी में इस विधा के विकास में पं.जवाहरलाल नेहरु के पत्रों का प्रसिद्ध संकलन “पिता के पत्र पुत्रि के नाम” १९३१ में प्रकाशित हुआ। यह पत्र मुख्य रुप से अंग्रेजी में इंदिरा गांधी को लिखे गये थे। जिसका अनुवाद मुंशी प्रेमचंद ने किया। यह अनुवाद हिंदी पत्र साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय हुवा। और इसी के प्रेरणा से लोगों में विविध विषयों के पत्रों को प्रकाशित करने का उत्साह जगा। उनके “ए बंच आफ ओल्ड लेटर्स” भी अनुवाद १९६० में “कुछ पुरानि चिठ्ठियां” नाम से अनुदित हुआ। नाम से अनुदित हुआ।
पत्र लेखन एक सशक्त और सृजनशिल कला है। जिसका प्रभाव व्यक्ति के चरित्र पर गंभीर रुप से दिखाई देता है। कई महापुरुषों ने कई व्यक्तियों की जीवन धारा बदल दी हैं। जैसे : - लोकमान्य तिलक, शरदचंद्र, रविंद्रनाथ, अरविंद, सुभाषचंद्र बोस, टॉलस्टाय, रोम्यां रोलाँ, न्सन, मार्क्स, शैली, किट्स, आदि के पत्र आज भी प्रभावित करते हैं। महापुरुषों की इस शैली को बरकरार रखने के लिए कई विद्वानों एवं महापुषों के पत्रों का अनुवाद निरंतर रुप से किया गया।

३. कहानी : -
हिंदी साहित्य में कहानी लेखन की परंपरा काफी पूरानी रही है। लेकिन हिंदी साहित्य में कहानी लेखन के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण है। “संवत १६६० के लगभग किसी लेखक ने ब्रजभाषा गद्य में “नासिकोपाख्यान” गंथ में संकृत-साहित्य में उपल्ब्ध काहनियों का अनुवाद किया।”[2] दंवत १७६७ में सूरत मिश्र ने संस्कृत के वेताल “पंचविश्तिका” की कहानीयों का अनुवाद ब्रजभाषा गद्य में “वेताल पच्चीसी” के नाम से किया था। इसके बाद लल्लु लाल, सदल मिश्र, और इंशाअल्ला खां के कहानी ग्रंथ हिंदी में माने जाने चाहिए। “किशोरिलाल गोस्वामी की पहली कहानी “इंन्दूमती” भी छायानुवाद की देन है।”[3] इसके बाद भी पत्र-पत्रिकाओं में भी कई अनुवाद नियमित रुप से प्रकाशित होते रहे हैं। आज की पत्र-पत्रिकाओं में सिधे पाश्चात्य भाषाओं से कहानीयों का हिंदी अनुवाद हो रहा हैं।
४. आत्मकथा : -
किसी भी नवजागृत देश और साहित्य की प्रेरणा के मूल स्रोत कुछ महापुरुष होते है। राष्ट्रीयता की एकता के लिए उनके उपदेश और संदेश प्रेरणादायी होते है जिनका उल्लेख और संदेश प्रेरणादायी होता है जिनका कार्यों का उल्लेख उनकी आत्मकथाओं में होता है। केवल अपने राष्ट्र के ही नहीं अन्य देशों के महापुरुषों की आत्मकथा भी प्रेरणादायी होती है। हिंदी साहित्य में आत्मकथाऎं काफी देर बाद लिखी गई। राजेंद्र बाबू की आत्मक्था को छोड कर अन्य अधिकतर आत्मकथाएँ हिंदी अनुवाद के माध्यम से सुलभ है। माहत्मा गांधी की आत्मकथा गुजरती में लिखी है। इसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने १९२७ में किया। जवाहरलाल नेहरु की आत्मकथा “मेरी कहानी” अंग्रेजी में लिखी है। जिसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने किया है। सुभाष चंद्र बोस की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद “तरुण के स्वप्न” का हिंदी अनुवाद श्रीगिरीशचंद्र जोशी ने किया। डॉ.सर्वपल्ली रधाकृष्णण की आत्मकथा “सत्य की खोज” के अनुवादक श्री शालिग्राम (१९४८) ने किया है। अनुवाद ने ही कई भाषाओं में “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को जन्म दिया है। एक तरह से देखा जाए तो अनुवाद ने ही “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को केवल हिंदी में ही नहीं बल्कि दुनया की अधिकतर भाषाओं में प्रतिष्ठापित करने का काम किया हैं। यह कृतियाँ जैसे महान हैं वैसे ही इनके अनुवाद भी महान हुए है।
भारत ही नहीं विश्व के महापुरुषों ने अपनी आत्मकथा अपनी भाषा में लिखी जिसका अनुवाद करना ही सभी भाषाओं के पाठकों की माँग बढती गई। आज भी दूसरी भाषाओं से उपन्यासों के बाद अधिकतर आत्मकथाओं का ही अनुवाद होता हैं। मराठी में लिखी गई दलित साहित्य में अधिकतर आत्मकथाओं का हिंदी में अनुवाद हो चूका हैं। जिसमें दया पवार, शरण कुमार लिंबाले, नामदेव ढसाल आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों का अनुवाद हो चुका हैं। इसके उपरांत अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे दलित साहित्य की आत्मकथाओं का अनुवाद भी नियमित रुप से हो रहा हैं।

जीवनी, रेखाचित्र, अलोचना, और साथ ही कविता, गजल,नई कविता आदिका के विकास मे भी अनुवाद की महत्व पूर्ण भूमिका रही है।


[2] हिंदी कहानी का सफर – रमेषचन्द्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०३
[3] हिंदी कहानी का सफर – रमेश् चंद्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०९

Saturday, April 12, 2008

मशीनी अनुवाद यंत्र की वेब सूची

सद्य स्तिथि में भारतीय भाषाओं में पाँच मशीनी अनुवाद कार्यरत दिखाई देते हैं। यह संख्या भारत में बोली जानेवाली भाषाओं की संख्या के नगन्य दिखाई देती हैं। लेकिन यह कार्य हिंदी के माध्यम से हो रहा है इस लिए सभी भारतीय भाषाओं के लिए उपयुक्त है। साथ ही संस्कृत, मरठी, तेलगू तमिल और बंगाली में कुछ कार्य हो रहा है लेकिन यह काम अभी पूर्ण रुप से सफल होने की कगार पर है। आज भारतीय तकनॉलॉजी के विकास को देखकर मशीनी अनुवाद की यह असफलता को देखकर यह विश्वास होता है कि मशीनी अनुवाद में भी हिंदी के अतरिक्त अन्य भाषाओं में भी मशीनी अनुवाद का विकास आवश्यक होगा। भारतीय भाषाओं में कार्यरत मशीनी अनुवास यंत्र की सूची निम्न प्रकार हैं।

१. http://mantrarajbhasha.cdac.in/mantrarajbhasha/index.html
२. http://shakti.iiit.net/~shakti/
३. http://translate.ildc.in:8080/jspexamples/work/tsswNew.do
४. http://tdil.mit.gov.in/download/mat.zip
५. http://www.janabhaaratii.org.in/janabhaaratii/marathi/report_translat...>

इन अनुवाद यंत्रों के अतिरिक्त अन्य अनुवाद यंत्र भी हिंदी अनुवाद में हैं जिनकी सूची मिलने पर उसे ब्लॉग में दिया जाएगा।

Tuesday, April 1, 2008

अनुवाद की परिभाषाएं (Translation Definition)

कांबले प्रकाश अभिमन्यू दि – ३१-०३-०८
एम.फिल.हिंदी अनुवाद
जे.एन.यू.
नई दिल्ली -६७



अनुवाद की परिभाषाएं

(Translation Definition)



अनुवाद संबंधी सिद्धांतों पर स्वतंत्र ग्रंथों का लेखन वस्तुत्: बीसवी शताब्दी में प्रारंभ हुवा। इसी शताब्दी के बौरान साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अनुवाद पर लेखों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन्हीं भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में अनुवाद की कई परिभाषाओं को जन्म दिया। कई परिभाषाओं पर सवाल भी उठाए गए तो कुछ परिभाषाओं को मान्यताएं भी मिली लेकिन आज भी अनुवाद की कोई एक परिभाषा नहीं मिलती है। परिभाषाओं पर विचार किया जाए तो अनुवाद की परिभाषा भाषा वैज्ञानिकों ने भी दी है और साहित्यकारों(कवियों) ने भी दी है।
भारतीय अनुवाद सिधांतकारों ने भी अनुवाद की परिभाषा दी है।
१. Dostert : - Meaning in our view is property of a language. An SL text has an SL meaning, and a TL text has a TL meaning.
डॅअ स्टर्ट : - “हमारे अर्थ विचार में भाषा का गुण है। किसी भी स्त्रोत भाषा के पाठ का अर्थ अपना होता है और लक्ष्य भाषा के पाठ का अर्थ भी अपना होता है।“

2. NIDA : - Translation consists in producing in the receptor language the close natural equivalent to the massage of the source language first in meaning and secondly in style.
नाइडा : - “अनुवाद का संबंध स्त्रोत भाषा के सम्देश का पहले अर्थ और फिर शैली के धरातल पर लक्ष्य भाषा के द्न्कटतम, स्वाभाविक तथा तुल्यार्थक उपादान प्रस्तुत करने से होता है।”

3. J.C.CATFORD : - “The replacement of textual material form one language by equivalent textual material in another language.”
कैटफर्ड : - “अनुवाद एक भाषा के पाठ्परक उपादानों क दूसरी भाषा के रुप में समतुल्यता के सिद्धात के आधार पर प्रतिस्ठापन है।”

4.FORESTEN : - “Translation is the transference of the content of text from one language into another, bearning in maind that we can, always disassociate the content from the forms.
फोर्स्टन : - “एक भाषा में अभिव्यक्त पाठ के भाव की रक्षा करते हुए – जो सदैव संभव नहीं होता – दुसरी भाषा में उतारने का नाम अनुवाद है।“

5.SAMUEL JOHNSON : - To translate is to change into another language retraining the sense.
सॅम्युअल जॅ न्सन : - “अनुवाद मुल भावों की रक्षा करते हुए उसे दूसरी भाषा में बदल देना है।”

6.JOHN CONINGTON : - A translation ought to endeavour not only to say what his author has said, but to say it as he said it.
जॅअन कॅअन्गटन :- “अनुवादक को उसके अनुवा का तो प्रयास करना ही है, किंतु जिस ढंग से कहा है उसके निर्वाह का भी प्रयाक सरना चाहिए।”

7.MATHEW ARNOLD : - A translation shoul affect as in the same way as the original may be supposed to have affected its first hearers.
मैथ्यू अऍर्नाल्ड : - “अनुवाद ऎसा होना चाहिए कि उसका वही प्रभाव पडे जो वूल का उसके पहले श्रोताओं पर पडा होगा। ”

8.WILLIAM KUPAR : - Fidelity indeed is of very essence of translation and the term itself implies it.
विलियम कपूर : - “अनुवाद की निष्ठा ही उसकी आत्मा है और फिर निष्ठा का अर्थ भी तो यही है।”

9.ARL RSKOMAN : - “YOUR AUTHOR ALWAYS WILL BE BEST ADVICE. Fall when he falls and when he rises rise”.
अर्ल रस्कोमन : - “ मूल लेखक का अनुसरण करना सर्वोत्तम है, उकीके शाथ गिरो, उसी के साथ उठो।”

10.ALEKZENDER POPE : - The fire of the poem is what the translator sould principally regarded as it is most likely to expire in his managing.
कविता की मूल चेतना अथवा उपमा की ओर ही अनुवाद का सर्वाधिक ध्यान होना चाहिए, नहीं तो वह अनुवाद के दौरान ही नष्ट हो जाएगी।”

11.ALEKZENDER FREZER TITLAR : -“(1) A translation should give a complete transcript of the ideas of the original work.
(2)the style and manner of writing should be pf the same character as that of the original.
एलेक्जेंडर फ्रेजर टिटलर : - “अनुवाद में मूल का संपूर्ण भाव समाहीत होना चाहिए, अनुवाद की शैली तथा लेखन विधि मूल की जैसी होनी चाहिए।”

12.JULIANE HOUSE : - “Translation is the replacement of a text in the source lanuage by a semantically and pragmatically equivalent text in the trget language…translation oral texts is called interpretation”.
जुलियन हाऊस : - “स्त्रोत भाषा की पाठ्य सामग्री का लक्ष्य भाषाकी अर्थ तठा व्यवहार की दृष्टि से समतुल्य पाथ्यसामग्रि से प्रतिस्थापन है…मौखिक, सामग्री का अनुवाद आशु अनुवाद कहलाता है।”

13.BASU : - “The word ‘Anuvad’ means repetation by way of explanation, illustration or corroboration, that is to say when a speaker demonstrates for some special purpose, a proposition which had already been demonstrated beore, that is called ‘ANUVAD’. ”
( Ashtadhyayi of panini, Vol 1 page 308 )


14.APTE : - (आपटे :- संस्कृत:अंग्रेजी कोशकार) “(1) repetition by way of explanation, illustration corroboration, (2)Explanatory repletion or reference to what is already mentioned, particularly any portion of the Brahmans, which comments on, illustrates or explains a VIDHI or direction previously laid down and which does not itself lay down any direction corroboration”.
१५. Dr.Jonson : - “अनुवाद का आश्य अर्थ को अक्षुण्ण रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण करना।”

१६. ए.एच.स्मिथ : - “अनुवाद का तात्पर्य अर्थ को यथासंभव बन्नए रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण से है।”

१७.रोमन जैकबसन :- “समस्त प्रकर का अनुवाद कर्य अलोचनात्मक व्याख्या है।”

१८.मेदनिकोवा :- “अनुवाद एक तरह से टीका-टिप्पणी करता है।”

१९ टैंकोक : - “अनुवादक का कार्य द्विमुख होता है – पहले तो उसे मूल के अर्थ का ठीक-ठीक अनुवाद करना होता है और दूक्सरा उसे मूल की शैलीगत विशेषताओं को भी अनुवाद में उतारना है।”

२०.न्यूमार्क : - “अनुवाद एक शिल्प है जिसमें एक भाषा में लिखित संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है।”

२१.हार्टमन तथा स्टार्क : - “मक भाषा या भाषाभेद से दूसरी भाषा या भाषाभेद में प्रतिपाद्य को स्ठानंतरित करने की प्रक्रिया करने की प्रक्रिया या उसके परिणाम को अनुवाद कहते हैं।”

२२.हैलिडे : - “अनुवाद एक संबंध है जो दो या दो से अधिक पाठों के बीच होता है, ये पाठ समान स्थिति में समान प्रकार्य सम्पादित करते हैं। दोनों पाठों का संदर्भ समान होता है और उसे व्यंजित होनेवाला संदेश भी समान है।”

२३.सपिर(sapir) : - “मक सभ्यता के एक प्रतिनिधित्व की दृष्टि से दो भाषाएँ समान नहीं हो सकती। कारण दो सभ्याएँ जिन समाजों में जीती हैं उनके अपने-अपने संसार है। इस प्रकार स्पष्ट है की अनुवद में मात्र भाषिक परिवर्तन नहीं होता, प्रत्युत उसमें सभ्यता का रुपांत्रण औएक्षितहै। रुपांत्रण निकटतम ही संभव है।

२४.प्योडोर एच.सेवरी(Savory) : - “अनुवाद प्राय:उतना ही प्राचीन है जितना मेल लेखन और उसका इतिहास ही भ्व्य हौर जटिल है जितना साहित्य की किसी दूसरी शाखा का।”

२५. Dr.गार्गी गुप्त : - “अनुवाद प्रक्रिया के दो मुख्य अंग होते हैं। अर्थबोध और व्याकरण सम्मत भाषा में स्पष्ट संप्रेषण। इसीलिए अनुवाद की निष्ठा दोवुखी होती है, मूल रचनाकर के प्रति अर्थबोध की दृष्टि से और पाठक के प्रति शुद्ध तठा सुबोध संप्रेषण की दृष्टि से। मूल हचना की जो संकल्पनाएँ अथवा स्थितियाँ औदित रचना के पाठक के लिए अज्ञात अस्पष्ट या दुऋह हों, उनकी व्याख्या, स्पष्छीकरण, अंतर्संबंधों का विवरण देना अत्यावश्यक है। यदि हम पाथक की वुल रचना की मनोहारी भूमि में संदेह ले जाना चाहते हैं तो उसका वह मनोहर स्वरुप यथावत उसके मन में भी प्रतिबिम्बित होना चाहिए।”

२६.जी.गोपीनथन : - “अनुवाद वह द्वंद्वात्मक प्रक्रिया है जिसमें स्त्रोत पाथ की अर्थ संरचना(आत्मा) का लक्ष्य पाठ की शैलीगत संरचना ( शरीर ) द्वारा प्रतिस्थापन होता है।”

२७.Dr.कृष्णकुमार गोस्वामी : - “एक भाषा में व्यक्त भावों या विचारों को दूसरी भाषा में समान और सहज रुप से व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।”

२८.पट्टनायक : - “अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव (अर्थपूर्ण संदेश या संदेश का अर्थ) को एक भाषा-समुदाय से दूसरे भाषा समुदाय में संप्रेषित किया जाता है।”

२९.Dr. सुरेशकुमार :- “एक भाषा के विशिष्ट भाषा भेद के विशिश्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्र्स्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मुल के भाशिक अर्थ, प्र्योग के वैषिश्ट्य से निष्पन्न अर्थ, प्रयुक्ति और शिली की विशिषता, क्विशय वस्तु तथा संबंध सांस्क्रुतिक वैशिश्ट्य को यठासंभव संरक्षित रखते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभ्हाविक रुप से ग्राह्य प्रतित होता है।”

३०.Dr. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव : - “एक भाषा(स्त्रोत भाषा) की पाठ सामग्री में अंतर्निहीत तथ्य का समतुल्यता के सिधांत के आधार पर दूसरी भाषा (लक्ष्य) में संगठनात्मक ऋपंतरण अथवा सर्जनात्मक पुनर्गठन को ही अनुवाद कहा जाता है।”

३१.Dr. भोलानाथ तिवारी : - भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है और अनुवाद है व्न्हीं प्रतिकों का प्रतिस्थापन, अर्थात एक भाषा के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम ( कथनत:और कथ्यत:) समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग। इस प्रकार अनुवाद निकटतम, समतुल्य और सहज प्रतिप्रतीकन है।

समय