Sunday, April 20, 2008

अनुवाद की राजनीति ( Politics In Translation )

Prakash kamble
JNU Hindi Translation

अनुवाद की राजनीति
( Politics In Translation )


किसी विद्वान् का मानना है कि “मानव जन्मत: राजनीतिक प्राणी है।“ यह राजनीति कभी खुले रुप में दिखाई देती है तो कभी गुप्त रुप में। कभी हिंसक रुप में तो कभी अहिंसक रुप में। कभी मौखिक तो कभी लिखित रुप से। व्यक्ति स्वंम के फायदे के लिए राजनीति करता है, तो कभी उसे मजबूरी में राजनीति का सहारा लेना पडता है। कई विद्वान इसे एक ही सिक्के के दो पहलू के रुप में देखते हैं। जिससे किसी को फायदा होता है तो किसी को नुकसान आज समाज का काफी छोटा अंश राजनीति के घेरे से छूटा हुआ दिखाई देता है। व्यवसाय, शिक्षण, साहित्य, समाज व्यवस्था जैसे समाज के विश्वस्त क्षेत्रों में भी राजनीति का असर जैसे ही बढा राजनीति के जडों ने अनुवाद के क्षेत्र को भी अपने घेरे में ले लिया। जिसमें अनुवाद का निर्माण कर्ता “अनुवादक” सबसे पहले अनुवाद के राजनीति का शिकार हुआ।
अनुवाद कोई सजीव या निर्जीव प्राणी नहीं हैं। अनुवाद एक प्रक्रिया है। जिसका उपयोग एक व्यक्ति एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में ले जाता है। इस प्रक्रिया में अनुवादक जान बूजकर पूर्ण ज्ञान के बावजूद अनुवाद को मूल अर्थ से दूर ले जाता है}। इस कूटनीतिक प्रक्रिय को अनुवाद की राजनीति कह सकते है। अनुवाद में यह क्रिया अनुवादक स्वंय करता है, या गलती से हो जती है। तो कई बार सामाजिक दबाव के कारण भी अनुवादक लक्ष्य पाठ के साथ खिलवाड करता है। साथ ही अन्य भाषिक पाठकों में मूल रचना के संदर्भ में भ्रांती निर्माण हो सकती है। अनुवाद की राजनीति का एक मूल उद्देश्य यह भी होता है कि अनुवाद के पाठकों में मूल रचना मे प्रति द्वेष निर्माण करना या अनुवाद करते समय निम्न क्षेत्रों में हेर-फेर करने की सम्भावना होती है।
१.भाषाशैली : - देशज, विदेशी, विशिष्ट जाति, स्थान के अनुसार भी भाषा की शैली बदलती हुई दिखाई देती है। अनुवादक जिस भाषा शैली को वरियता देगा उकी भाषा शैली वाले लोग अनुवाद से जुडेंगे। अनुवादक उन्हीं लोगों को जोडेगा जिसे वह जोडना चाहता है। या उसे कहा गया हो की किस शैली को अधिक वरियता देना है। जैसे :- पहले प्रेमचंद के कहानीयों का अनुवाद ठेठ या देहाती मराठी भाषा शैली में न करके साहित्यिक, शिक्षित समाज व्यवस्था की भाषा शैली में किया गया है।
२. मूल पाठ के कूख्य अंशोम् को छोडना : - या मूख्य अंशो का गलत अनुवाद करना। जैसे – दलित साहित्य के अनुवादों में कई अपशब्दों या गालियों को और वासनाधिन वर्णनों को हिंदी अनुवाद में कई जगह छोडा गया हैं। या उन्हें काट दिया गया हैं।
३.शब्द चयन : - शब्द एक खेल के साधन रुप वहीं व्यक्ति ले सकता है जिसके पास शब्दों का भंडार हो। जिसे प्रत्येक शब्द के अर्थ की संपूर्ण जानकारी हो। अनुवाद यह काम बखूबी कर सकता है। क्योंकि उसका काम शब्दों पर ही टिका हुआ है। उसे प्रत्येक शब्द का अर्थ जानना ही होता है। और यहीं से अनुवाद में शब्द चयन के राजनीति की प्रक्रिया भी शूरु होती है। किस शब्द के लिए अनुवाद करते समय दूसरे अर्थ वाल शब्द देना है या दो तीन शब्दों की जगह कहावत या लोकोक्ति का उपयोग करना है।
४. मूहावरे, कहावते, लोकोक्तियों का अर्थ बदल देना: - किसी भी मूहावरे, कहावतें, लोकोक्तियों के दो अर्थ होते है। एक तो सरल अर्थ होता हैं और दूसरा व्यंग्यार्थ या अस्पष्ट अर्थ जिसके शब्दों से अर्थ बदल क भिन्नार्थ निकलता है। अनुवाद को यह तय करना होता है कि दोनों में से किस अर्थ को लेना हैं अगर अनुवाद लेखक को जिस बात को कहना है उसी के आधार पर चलना हो तो वह ज्ञात अर्थ सही रुप में दे देता है अगर वह गलत अर्थ देता हैं तो वह अनुवाद की राजनीति कर रहा है।
५. सांस्कृतिक क्षेत्रों में भिन्नता निर्माण करना : - अनुवाद की राजनीति का सबसे प्रमुख अस्त्र सांस्कृतिक क्षेत्रों मे भिन्नता निर्माण करना यह मान सकते है। जिसमें मूल पाठ और अनूदित पाठ की संस्कृतिक में भिन्नता दिखाई जाती है। जिससे मूल पाठ और अनूदित पाठ के पाठकों पर इसका विपरित परिणाम दिखाई है। यह अनुवाद उन्हीं पाठकों को अधिक पसंद आयेगा जिसके सांस्कृतिक पक्ष अनुवाद से जुडते हो। अनुवादक यह कार्य कई बार अनजाने में भी करता हैं।
६.भाषाई स्तर में भिन्नता निर्माण करना : - भाषाई स्तर का उपयोग अधिकतर संप्रेषण के रुप में होता है। दो व्यक्तियों के बीच में किस स्तर में संप्रेषण हुआ उस संप्रेषण का अनुवाद किस भाषा स्तर में अनुवादक करना चाहता है या करता है उससे दो व्यक्तियों के वीच के सामाजिक सतर एवं आर्थिक सतर की पहचान होगी।
७.संकेत स्थलों में भिन्नता दिखाना : - संकेत स्थल भषा एवं संस्कृति के द्योतक होते है जिससे दो भाशाओं एवं संस्कृति की पहचान होती है अनुवादक को ऎसे संकेतों का अनुवाद नहीं करना चाहिए। या करें तो दोनों की कोटियाँ एवं क्षेत्र समान हो। अगर वह एसा नहीं करता तो जरुर वह कुछ और करने की सोच रहा है।
८.नाम, सर्वनाअम, और क्रिया रुपों में भिन्नता दिखाना।
९. व्याकरणिक शब्दों में भिन्नता दिखाने से भी अनुवाद में भिन्नता निर्माण होती है।
१०.वैचारिक (विचार) के स्तर में भिन्नता दिखाना।
११.वर्तमान काल, भविष्य काल और भूतकाल के वाक्यों में जान बूजकर भिनाता
निर्माण करना।
१२.शब्दों और वाक्यों के लिंगों मे परिवर्तन करना। ( जैसे – स्त्री लिंग का
पुलिंग करना)
अनुवाद के समय जान बुझकर बदलाव करना और पाठक को मूल पाठ के लक्ष्य से दूसरी ओर ले जाना अनुवाद की राजनीती का प्रमूख लक्ष्य होता है। जिसे पाठक तभी समझ पायेगा जब वह मूल पाठ और अनूदित पाठ को पढेगा। यह कार्य एक अनुवादक दूसरे अनुवादक अनुवाद पढकर। अनुवाद की राजनीति का पोल खोल सकता है। सामान्य पाठक यहीं समझता हैं कि अनुवादक ने अनुवाद सही रुप में नही किया। जिसके कारन वह बाकी अनुवादों को भी गलत या अनुवाद निम्न स्तर के होते हैं। यह भावना अपने मन में बना लेता है। अगर अनुवाद अनुवाद की राजनीति करने में सफल होता है, तो पाठक के मन में मूल पाठ के प्रति द्वेश निर्माण हो सकता है। जिससे मूल रचना के प्रति समाज में असंमजस की स्तिथि निर्माण हो जाती है।
अनुवाद में व्यवसाय के रुप में किया जाने वाला अनुवाद या जल्द बाजी में किए जाने वाले अनुवादओं में हुए भूलों को हम माफ भी कर सकते है या ऎसे अनुवाद भूलों अथवा अज्ञान का नमूना पेश करते है। लेकिन सोच समझकर की गई भूलों को कैसे सुधारे। जो पाठ अनुदित होकर प्रकाशित हो जाता है उसके बाद वह पाठ अनुवादक का नहीं रह पाता और उसे फिर से उस पाठ को प्रकाशित करने में कई वर्षों तक इंतजार करना पड सकता है। कई अनुवादक मूल पाठ का अनुवाद इसी लिए करते है कि अनुवाद से कुछ धन समाया जाए। लेकिन कुछ अच्छे अनुवादक पैसे कम मिलने वाले है इस सोच से भी अनुवाद ठिक से नहीं करते। इस क्रिया में प्रकाशक भी कई बार शामिल होते हैं। वे अनुवादक पर दबाव डालते हैं कि निश्चित समय, और कम से कम पृष्ठों में अनुवाद होना चाहिए ? अनुवाद के लिए इतने ही रुपए मिलेंगे ? इन सवालों के कारण भी अनुवादक अनुवाद करने से पुर्व कुछ सोचकर ही अनुवाद हाथ में लेता है। अनुवादक केवल गलत अनुवाद करने के लिए या अनुवाद में हेर-फेर करके ही राजनीति नहीं करता तो वह किसी समाज, व्यक्ति, या लेखक की प्रतिष्ठा बढाने के लिए या घाटाने के लिए राजनीति कर सकता है।
अब अनुवाद की ओर देखा जाए तो आज अनुवाद उस भूमिका में नहीं रहा जिसे केवल शब्द से शब्द अनुवाद की प्रक्रिया में बांध कर रहना पडे। आज कई एसे अनुवादक विद्वान है जो अनुवाद में अनुवाद की राजनीति का मंत्र अपनाते है। यह क्रिया या खेल सभी अनुवादकों या अनुवाद पहली बार कार्य कर रहें अनुवादक नहीं कर सकतें। यह कार्य एक कुशल या अनुभव पूर्ण अनुवादक ही कर सकता है।

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