दि :-24 /०४/०८
kamble prakash abhimannu
Hindi Translation
JNU- N.Delhi
“हिंदी गद्य साहित्य की नई विधाओं का विकास और हिंदी अनुवाद”
प्रस्तावना : -
केवल साहित्य ही नहीं समाज, संस्कृति, साहित्य, भाषा, व्यवसाय एवं अनुवाद से जुडे अधिकतर विधाओं के विकास में अनुवाद का ही योगदान महत्वपूर्ण रहा हैं। आज भी आधुनिकता और प्रौद्योगिकी के युग में भी अनुवाद यह भूमिका बखूबि निभा रहा हैं।
हिंदी में नई साहित्यिक विधाओं के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका किस प्रकार महत्व पूर्ण रही इसे हम केवल अनुवाद की भूमिका को ध्यान में रखते हुए निम्न रुप से देख सकते है।
पाश्चात्य सहित्य के विकास के साथ ही हिंदी साहित्य की विधाओं का विकास भी होता गया। इसका एक कारण यह था की इस दौरान अधिकतर जगह अनुवाद की स्त्रोत भाषा अंग्रेजी थी। विश्व के किसी भी साहित्य का अनुवाद पहले अंग्रेजी में होता फिर अंग्रेजी के माध्यम से अन्य भाषा जैसे हिंदी अनुवाद होता था। हिंदी साहित्य में न केवल पाश्चात्य साहित्य में विकसित साहित्यिक विधाओं का ही विकास हुवा बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्यक विधाओं का भी विकास अनुवाद के माध्यम से हिंदी की साहित्यिक विधाओं में दिखाई दिया । विशेष कर हम उन्हीं विधाओं पर अधिक विचार करेंगे जिसमें अनुवाद का महत्व अधिक रहा। जिसमें मुख्य रुप से निम्न विधाओं को प्रमुख रुप से दिखा जाता हैं। १.नाटक २.उपन्यास ३.निबंध ४.कहानी ५.संस्मरण ६.आत्मकथा ७.जीवनी ८.समीक्षा ९.इंटरव्यूव साहित्य (साक्षात्कार) १०.यात्रा-साहित्य ११.डायरी-साहित्य १२.रेखाचित्र १३.एकांकी १४.पत्र-साहित्य १५.काव्य आदि। साहित्यिक विधाओं के विकास पर बारिकी से अनुसंधान कीया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा की हिंदी साहित्य में इन नई साहित्यिक विधाओं के विकास में अनुवाद ने सबसे महत्व पूर्ण भूमिका निभाई हैं। परंतू आज भी अनुवाद को उसके कार्य के अनुसार हिंदी साहित्य में महत्व नहीं दिया जाता फिर भी अनुवाद अपना कार्य निरंतर रुप करता रहेगा।
उपन्यास : -
इसमें कोई संदेह नहीं की उपन्यास हिंदी साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। इसका एक कारण यह भी है कि हिंदी उपन्यास के विकास की प्रक्रिया में न केवल हिंदी के मौलिक ग्रंथो का योगदान रहा बल्कि पाश्चात्य देशों मे लिखे महानतम ग्रंथो के अनुवाद हिंदी उपन्यास के विकास में मिल का पत्थर साबित हुए। जितने मौलिक उपन्यास लिखे जा रहें थे उसी के अनुपात में हिंदी अनुवाद का कार्य भी समान रुप में चल रहा था। न केवल पाश्चात्य बल्कि भारतीय भाषाओं से भी हिंदी में कई उपन्यासों का अनुवाद हो रहा था। बंकिमचंद्र, रवींद्रनाथ, बाबू गोपालदास, रमेश्चंद्रदत्त, हाराण्चंद्र, चंडीचरण सेन, शरद बाबू, चारुचंद, आदि बंग उपन्यासकारों के उपन्यासों का अधिक अनुवाद हुवा।
कुछ उर्दू और संस्कृत उपन्यासों के अनुवाद भी हुए जैसे – ’ठगवृतांतमाल’ ’पुलिसवृतांतमाल’ ’अकबर’ ’चित्तौरचातकी’ ’इला’ ’प्रमीला’ ’जया’ और ’मधुमालती’आदि उपन्यासों का अनुवाद किया।उदाहण स्वरुप हम कुछ उपन्यासों के अनुवाद की छोटी सूची हम निम्न रुप से देख सकते है।
अनु.क्र
मूल lekhak
उपन्यास
अनुवादक
१.
रमेश्चनद्र
बंग विजेता
गदाधरसिंह(१८८६)
२.
बंकिमचन्द्र
दुर्गेशनन्दिनी
गदाधरसिंह(१८८२),राजसिंह,इंदरा रानी, युगलांगुर,प्रतापनारायण मिश्र
३.
दामोदर मुकर्जी
मृण्मयी
राधाचरण गोस्वामी
४.
स्वर्ण कुमारी
दीप निर्वाण
मुंशी हरितनारायण लाल
इतने ही नहीं अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रशियन, जैसी पाश्चात्य भाषाओं के साथ ही तमिल, तेलगू, मरठी आदि भारतीय भाषाओं से भी अनुवाद प्रस्तूत हुए। जिनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण हैं।
नाटक : -
बाबू रामकृष्ण वर्मा द्वारा ’वीरनार’,’कृष्णाकुमा’ और ’पद्मावत’ इन नाटकों का अनुवाद हुवा। बाबू गोपालराम ने ’ववी’, ’वभ्रुवाह’, ’देशदशा’, ’विद्या विनोद’ और रवींद्र बाबू के ’चित्रांगदा’ का अनुवाद किया, रुपनारायण पांण्डे ने गिरिश बाबू के ’पतिव्रता’ क्षीरोदप्रसाद विद्यावियोद के ’खानजहाँ’ दुर्गादास ताराबाई, इन नाटकों के अनुवाद प्रस्तुत किए।
अंग्रेजी नाटकों के अनुवाद भी इसी कालखंड मे निरंतर रुप से चल रहे थे। जिन में ’रोमियो जूलियट’ का ’प्रेमलिला’ नाम से अनुवाद हुवा। ’ऎज यू लाईक इट’ और ’वेनिस का बैक्पारी’, उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी के भाई मथुरा प्रसाद चौधरी ’ए मौकबेथ’ का ’साहसेंद्र साहस’ के नाम के अनुवाद किया। हैमलेट का अनुवाद ’जयंत’ के नाम से निकला जो वास्तव में मराठी अनुवाद से हिंदी मे अनूदित किया गया था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में नाटकों का अधिक अनुवाद हिंदी में दिखाई देता है। विद्यासुंदर (संस्कृत “चौरपंचाशिका” के बंगला-संस्करण का अनुवाद), रत्नाअवली, धनंजय विजय (कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का), कर्पूरमंजरी (सट्टक, के संचन कवि-कृत नाटक का अनुवाद) अगर हिंदी नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में किन अनूदित नाटकों ने महत्व पूर्ण कार्य किया तो उसे हम निम्न रुप से देख सकते है। कुछ नाटकों के अनुवाद दो अनुवादकों ने भी किए है।
“संदर्भ”[1]
अनु.क्र
मूल नाटककार
नाटक
अनुवादक
१
भवभूति
उत्तररामचरित
देवदत्त तिवारी(१८७१),
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८६)
२
भवभूति
मालतीमाधव
लाला शालीग्राम(१८८६),लाला सीताराम (१८९५),
३
भवभूति
महावीरचरीत
लाला सीताराम(१८९८)
४
कालिदास
अभिज्ञानशाकुन्तल
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८८)
५
कालिदाक
मालविकाग्निमित्र
लाला सीताराम (१८९८)
६
कृष्णमित्र
प्रबोधचन्द्रोदय
शीतलाप्रसाद(१८७६), आयोध्याप्रसाद चौदरी १८८५
७
शुद्रक
मृच्छकटिक
गदाअधर भट्ट(१८८०),लाला सिताराम
८
भट्ट नारायण
विणीसंहार
ज्वालाप्रसाद सिंह(१८९७)
९
हर्ष
रत्नावली
देवदत्त तिवारि(१८७२),
१०
माइकेल मदुसूदन
पद्मावती
बालकृष्ण भट्ट(१८७५)
११
माइकेल मदुसूदन
शर्मिष्ठा
रामचरण शुक्ल(१८८०)
१२
माइकेल मदुसूदन
कृष्णमुरारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१३
मनमेहन वसू
सती
उदितनारायण लाल(१८८०)
१४
राजकिशोर दे
पद्मावति
रामकृष्ण वर्मा(१८८६)
१५
द्वारिकानाथ गांगुली
विर नारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१६
शेक्सपियर
मरचेंट ऑफ् वेनिस
“वेनिस का व्यापारी” – आर्या १८८८
१७
शेक्सपियर
द कॉमेडी ऑफ् एरर्स
“भ्रमजालक” – मुशी इमदाद अली, “भूलभुलैया” – लाला सिताराम
१८
शेक्सपियर
ऎज यू लाइक इट
“मनभावन” – पुरोहित गोपीनाथ, १८९६
१९
शेक्सपियर
मैकबेथ
“साहसेंद्र साहस” मथुराप्रसाद उपाध्याय,१८९३
२०
एडीसन
केटो
कृतान्त(१८७६)
संस्कृत नाटकों का हिंदी में अनुवाद होता रहा हैं। संस्कृत नाटकों के अनुवाद में रायबहादुर लाला सीताराम बी.ए. का कार्य अधिक महत्व पूर्ण रहा। नागानंद ने भी, मृच्छकटिक, महावईरचरित, उत्त्ररामचरित, मालतीमाधव, मालविकाग्निमित्र आदि नाटकों का अनुवाद सफल रुप से किया। यह नाटक अनुवाद होकर भी इन नाटकों की भाषा सरल और सादी और आडंबर शून्य हैं। पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र ने वेणीसंहार और अभिज्ञान शकुंतला के हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए। सत्य नारायण कविरत्न ने भहूति के उत्तर राअमचरित का अनुवाद किया और मालति माधव का अनुवाद भी किया। इस प्रकार अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत बंगाला अदि भाषाओं से हिंदी मे भारि मात्रा में अनुवाद किया। जिसने हिंदी नाटक साहित्य के विकास में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। आज भी भारी मात्रा में मराठी, गुजराती, पारसी आदि अन्य भारतीय भाषाओं से हिंदी में नाटकों का अनुवाद हो रहा हैं।
मौलिक हिंदी नाटक और अनूदित हिंदी नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हिंदी नाटकों के अनुवाद की भूमिका अधिक सशक्त रुप से सामने आ सकती है। जिसमें शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद को अधिक सफलता मिली। हिंदी नाटकों के तकनिक के विकास में शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद का अधिक उपयोग हुवा। साहित्यिक अनुवादों में हिंदी में अधिकतर नाटकों का अनुवाद हुवा है।
२. निबंध : -
निबंध यह विधा हिंदी साहित्य में पूर्ण रुप से स्वर्जित सम्पत्ति है। यह सर्वता खड़ी बोली गद्य कि देन है साथ ही इसकी प्रेरणा पश्चिमी है। हिंदी गद्य का यह आधुनिक रुप है। फ्रांस के “मिकेल मौंटेन” को निबंध साहित्य के जन्मदाता माने जाते है। हिंदी गद्य साहित्य के विकास के समय अंग्रेजी में भी निबंध विधा अधिक विकसित नहीं हुई थी इस कारण इस विधा का विकास हिंदी में मौलिक रुप में ही अधिक गति से हुआ।
निबंध लेखन के प्रारंभिक काल में ही निबंध को रास्ता दिखलाने वाले दो प्रमुख ग्रंथ हिंदी में अनुवाद होकर प्रकाशित हुए।
१. बेकन विचार रचनावली (अंग्रेजी के पहले निबंधकार) के
अंग्रेजी निबंधोंका अनुवाद।
२. विष्णूशास्त्री चिपलूणकर द्वारा लिखित “निबंधमालादर्श” मरठी से हिंदी में अनुवाद किया गया।
यह दोनो भी ग्रंथ अपनी भाषा के महत्व पूर्ण ग्रंथ हैं। यह दोनों ग्रंथ हिंदी निबंध के विकास में महत्व पूर्ण रहें। इसके बाद कई हिंदी साहित्यकारों ने पत्र-पत्रिकाओं में मौलिक निबंध लिखना आरंभ किया। लेकिन आज भी कई भाषाओं से हिंदी में निबंधों का अनुवाद किया जाता हैं।
३. यात्रा साहित्य : -
मनुष्य हमेशा से ही घुम्मकड प्रवृत्ति का रहा है। लेकिन केवल एक जगह से दूसरी जगह धुमने से यात्रा साहित्य नहीं लिखा जाता। कुछ यात्रा प्रेमी या घुम्मकड अपनी –अपनी मनोवृत्ती में साहित्यिक भी होते हैं। जो निसंग भाव से भ्रमण भी करते है और निसर्ग, भिन्न-भिन्न सम्स्कृतियों, समाज, धर्म, आदि से प्रेरणा लेकर साहित्य काभी निर्माण भी करते हैं। जिसमें फाहियान, हेंगसीग, इत्संग, इब्नबतूता, अल्बरुनी, मार्को पोलो, हैवर्नियर आदि को प्रमूख रुप से देख सकते हैं।
इन पाश्चात्य यात्रा वृतांतो का भारी मात्रा में हिंदी में अनुवाद हुवा। जिससे हिंदी में यात्रा साहित्य के विकास में योगदान दिया।
४. डायरी साहित्य : -
डायरी साहित्य विधा हिंदि को पाश्चात्य देशों की देन हैं जिसे भारतीय लेखकोंने अपनी-अपनी शैली में ढाल कर अपनाया है। “महात्मा गांधी के प्रभाव से भारत में डायरी लेखन का प्रवर्तन जीवन साधन के माध्यम के रुप में हुआ।”[2] महात्मा गांधी की डायरी का हिंदी अनुवाद श्रीराम नारायण चौधरी द्बारा अनूदित होकर हिंदी साहित्य में आया। जिसके बाद इस डायरी का अनुवाद अन्य भारतीय और पाश्चात्य भाषाओं में भी होता रहा। इससे कुछ पहले टॉलस्टाय की डायरी का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुवा था। जिससे प्रेरणा लेकर अनेक हिंदी लेखकों का झुकाव कलात्मक डायरी लेखन की ओर हुआ। इसके उपरांत “महादेव भाई की डायरी” का मूल गुजराती से हिंदी में अनुवाद हुवा है। इसी प्रकार की एक डायरी “मनुबहन गांधी” नामक डायरी गुजरती से हिंदी में प्रकाशित हुई।
डायरी लेखन की शैली में विशिष्टता लाने का कार्य भी अनुवाद ने ही किया जिसमें विषय वस्तू के गंभीर विश्लेषण और विस्तार की दृष्टि से “भारत विभाजन की कहानी” महत्वपूर्ण डायरी है। जो मूल रुप में अंग्रेजी ‘maim lik gav ahi’ अहि हिंदी में यह १९४७ में ’एलेन केंपबेल जॉनसन’ ने लिखी है जो लॉर्ड माउंटबेटन के प्रेस अटैची थे।
देखा जाए तो अनुवादने हिंदी साहित्य में डायरी लेखन विधा को हिंदी साहित्य में एक साहित्यिक विधा के रुप में प्रतिस्थापित करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई है।
५. इंटरव्यू साहित्य (साक्षात्कार) : -
एक साहितिक विधा के रुप में रेखाचित्र और रिर्पोताज की तरह हिंदी को यह साहित्यिक विधा पश्चिम की ही देन है। हिंदी में इस विधा के विकास का श्रेय ’श्री चंद्रभान’ को जाता है, लेकिन हिंदी में इस विधा का सूत्रपात ’पं.बनारसीदास चर्तुवेदी’ को जाता है। “आज विविध क्षेत्रों की पत्र-पत्रिकाओं में और स्वतंत्र पुस्तकों द्वारा हिंदी में इंटरव्यूव साहित्य से परिचित हो चुका है और अनुदित हो रहा हैं।”[3] हिंदी में इसी विधा को साक्षात्कार ’भेंट’ ’भेटवार्ता’ के रुप में देखा जाता है। हिंदी में साक्षात्कार केवल साहित्य में ही अनुवाद नहीं हो रहें बल्कि टि.व्ही चैनलों पर भी व्हिडिओ रुप में भी मोटे रुप में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं अनुवाद हो रहें है।
[1] हिंदी साहित्य का इतिहास पृश्ठ - ४८२
[2] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
[3] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
३. हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ३०९
६. एकांकी : -
यह कहना भ्रामक होगा की भारतीय साहित्य में एकांकी नहीं थी। “जैसे हम देखते है उत्तर भारत की रामलीला, बंगाल की यात्रा, ब्रजभूमी की रासलीला, महराष्ट्र की ललित कला, गुजरात का बवाई, राजस्थान का कठपुतली और नौटंकी के रुपों को देखा जा सकता हैं।”[1] संस्कृत में तो एकांकि के छह रुप दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रुप से हिंदी में एकंकी का अधिक विकास भारतेंदु युग में हुआ। जिसने राष्ट्रीय एकता की धारा, पुराणिक धारा, हास्य, व्यंगप्रधान धारा निर्माण हुई।
इसी धारा में हिंदी के मौलिक रचनाकारों ने भी एकांकीयों का अनुवाद किया जिसमें प्रेमचंदजी का नाम भी आता है। हिंदी एकांकी के विकास काल में जी.पी श्रीवास्तव ने ’मौलियर’ के कई एकांकीयों के कई सफल अनुवाद किये। श्रीक्षेमानंद राहत ने टॉल्सटाय के कुछ छोटे एकांकीयों का अनुवाद किया। जिसमें “कलवार् की करतूत” मुख्य है। श्री रुपनारायण पांण्डेय ने रविबाबू के एकंकियों का अनुवाद अधिक किया। द्विवेदी युग में एकांकी के तकनीक में अधिक विकास हुवा जिसका एक कारण अंग्रेजी से अधिक अनुवाद होने लगे थे। इन अनुवादों का प्रभाव हिंदी के मौलिक एकांकीयों के तकनीक में अधिक विकास करने के लिए हुवा। “सृष्टी का आरंभ” जार्ज बर्नाड शा का अनुवाद है। एकंकी का विकास भारतेंदू युग के साथ ही द्विवेदी युग में भी हुआ जिसमें अनुवादकों का अधिक योगदान रहा। द्विवेदी युग के प्रमुख रचनाकारों में जी.पी श्रीवास्तव का नाम पहले आता है। जिन्होंने अधिकतर एकांकीयों का अनुवाद किया हैं। हिंदी एकांकी के विकास में १९३० का वर्ष महत्व पूर्ण रहा। इस वर्ष में कई अंग्रेजी एकांकीयों का हिंदी में अनुवाद हुआ। जिससे अंग्रेजी एकांकी ने हिंदी एकांकी को अनुवाद के माध्यम से अपने रंग में ढाला।
२. पत्र साहित्य : -
पत्र-साहित्य में पाश्चात्य साहित्य में अधिकतर विद्वानों ने लिखे पत्रों को संकलन कर उन्हें प्रकाशित किया जाता था। हिंदी में भी यह प्रथा चली कई विद्वानों के पत्रों के संकलन प्रकाशित हुए। हिंदी में इस विधा के विकास में पं.जवाहरलाल नेहरु के पत्रों का प्रसिद्ध संकलन “पिता के पत्र पुत्रि के नाम” १९३१ में प्रकाशित हुआ। यह पत्र मुख्य रुप से अंग्रेजी में इंदिरा गांधी को लिखे गये थे। जिसका अनुवाद मुंशी प्रेमचंद ने किया। यह अनुवाद हिंदी पत्र साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय हुवा। और इसी के प्रेरणा से लोगों में विविध विषयों के पत्रों को प्रकाशित करने का उत्साह जगा। उनके “ए बंच आफ ओल्ड लेटर्स” भी अनुवाद १९६० में “कुछ पुरानि चिठ्ठियां” नाम से अनुदित हुआ। नाम से अनुदित हुआ।
पत्र लेखन एक सशक्त और सृजनशिल कला है। जिसका प्रभाव व्यक्ति के चरित्र पर गंभीर रुप से दिखाई देता है। कई महापुरुषों ने कई व्यक्तियों की जीवन धारा बदल दी हैं। जैसे : - लोकमान्य तिलक, शरदचंद्र, रविंद्रनाथ, अरविंद, सुभाषचंद्र बोस, टॉलस्टाय, रोम्यां रोलाँ, न्सन, मार्क्स, शैली, किट्स, आदि के पत्र आज भी प्रभावित करते हैं। महापुरुषों की इस शैली को बरकरार रखने के लिए कई विद्वानों एवं महापुषों के पत्रों का अनुवाद निरंतर रुप से किया गया।
३. कहानी : -
हिंदी साहित्य में कहानी लेखन की परंपरा काफी पूरानी रही है। लेकिन हिंदी साहित्य में कहानी लेखन के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण है। “संवत १६६० के लगभग किसी लेखक ने ब्रजभाषा गद्य में “नासिकोपाख्यान” गंथ में संकृत-साहित्य में उपल्ब्ध काहनियों का अनुवाद किया।”[2] दंवत १७६७ में सूरत मिश्र ने संस्कृत के वेताल “पंचविश्तिका” की कहानीयों का अनुवाद ब्रजभाषा गद्य में “वेताल पच्चीसी” के नाम से किया था। इसके बाद लल्लु लाल, सदल मिश्र, और इंशाअल्ला खां के कहानी ग्रंथ हिंदी में माने जाने चाहिए। “किशोरिलाल गोस्वामी की पहली कहानी “इंन्दूमती” भी छायानुवाद की देन है।”[3] इसके बाद भी पत्र-पत्रिकाओं में भी कई अनुवाद नियमित रुप से प्रकाशित होते रहे हैं। आज की पत्र-पत्रिकाओं में सिधे पाश्चात्य भाषाओं से कहानीयों का हिंदी अनुवाद हो रहा हैं।
४. आत्मकथा : -
किसी भी नवजागृत देश और साहित्य की प्रेरणा के मूल स्रोत कुछ महापुरुष होते है। राष्ट्रीयता की एकता के लिए उनके उपदेश और संदेश प्रेरणादायी होते है जिनका उल्लेख और संदेश प्रेरणादायी होता है जिनका कार्यों का उल्लेख उनकी आत्मकथाओं में होता है। केवल अपने राष्ट्र के ही नहीं अन्य देशों के महापुरुषों की आत्मकथा भी प्रेरणादायी होती है। हिंदी साहित्य में आत्मकथाऎं काफी देर बाद लिखी गई। राजेंद्र बाबू की आत्मक्था को छोड कर अन्य अधिकतर आत्मकथाएँ हिंदी अनुवाद के माध्यम से सुलभ है। माहत्मा गांधी की आत्मकथा गुजरती में लिखी है। इसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने १९२७ में किया। जवाहरलाल नेहरु की आत्मकथा “मेरी कहानी” अंग्रेजी में लिखी है। जिसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने किया है। सुभाष चंद्र बोस की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद “तरुण के स्वप्न” का हिंदी अनुवाद श्रीगिरीशचंद्र जोशी ने किया। डॉ.सर्वपल्ली रधाकृष्णण की आत्मकथा “सत्य की खोज” के अनुवादक श्री शालिग्राम (१९४८) ने किया है। अनुवाद ने ही कई भाषाओं में “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को जन्म दिया है। एक तरह से देखा जाए तो अनुवाद ने ही “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को केवल हिंदी में ही नहीं बल्कि दुनया की अधिकतर भाषाओं में प्रतिष्ठापित करने का काम किया हैं। यह कृतियाँ जैसे महान हैं वैसे ही इनके अनुवाद भी महान हुए है।
भारत ही नहीं विश्व के महापुरुषों ने अपनी आत्मकथा अपनी भाषा में लिखी जिसका अनुवाद करना ही सभी भाषाओं के पाठकों की माँग बढती गई। आज भी दूसरी भाषाओं से उपन्यासों के बाद अधिकतर आत्मकथाओं का ही अनुवाद होता हैं। मराठी में लिखी गई दलित साहित्य में अधिकतर आत्मकथाओं का हिंदी में अनुवाद हो चूका हैं। जिसमें दया पवार, शरण कुमार लिंबाले, नामदेव ढसाल आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों का अनुवाद हो चुका हैं। इसके उपरांत अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे दलित साहित्य की आत्मकथाओं का अनुवाद भी नियमित रुप से हो रहा हैं।
जीवनी, रेखाचित्र, अलोचना, और साथ ही कविता, गजल,नई कविता आदिका के विकास मे भी अनुवाद की महत्व पूर्ण भूमिका रही है।
[2] हिंदी कहानी का सफर – रमेषचन्द्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०३
[3] हिंदी कहानी का सफर – रमेश् चंद्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०९
kamble prakash abhimannu
Hindi Translation
JNU- N.Delhi
“हिंदी गद्य साहित्य की नई विधाओं का विकास और हिंदी अनुवाद”
प्रस्तावना : -
केवल साहित्य ही नहीं समाज, संस्कृति, साहित्य, भाषा, व्यवसाय एवं अनुवाद से जुडे अधिकतर विधाओं के विकास में अनुवाद का ही योगदान महत्वपूर्ण रहा हैं। आज भी आधुनिकता और प्रौद्योगिकी के युग में भी अनुवाद यह भूमिका बखूबि निभा रहा हैं।
हिंदी में नई साहित्यिक विधाओं के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका किस प्रकार महत्व पूर्ण रही इसे हम केवल अनुवाद की भूमिका को ध्यान में रखते हुए निम्न रुप से देख सकते है।
पाश्चात्य सहित्य के विकास के साथ ही हिंदी साहित्य की विधाओं का विकास भी होता गया। इसका एक कारण यह था की इस दौरान अधिकतर जगह अनुवाद की स्त्रोत भाषा अंग्रेजी थी। विश्व के किसी भी साहित्य का अनुवाद पहले अंग्रेजी में होता फिर अंग्रेजी के माध्यम से अन्य भाषा जैसे हिंदी अनुवाद होता था। हिंदी साहित्य में न केवल पाश्चात्य साहित्य में विकसित साहित्यिक विधाओं का ही विकास हुवा बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्यक विधाओं का भी विकास अनुवाद के माध्यम से हिंदी की साहित्यिक विधाओं में दिखाई दिया । विशेष कर हम उन्हीं विधाओं पर अधिक विचार करेंगे जिसमें अनुवाद का महत्व अधिक रहा। जिसमें मुख्य रुप से निम्न विधाओं को प्रमुख रुप से दिखा जाता हैं। १.नाटक २.उपन्यास ३.निबंध ४.कहानी ५.संस्मरण ६.आत्मकथा ७.जीवनी ८.समीक्षा ९.इंटरव्यूव साहित्य (साक्षात्कार) १०.यात्रा-साहित्य ११.डायरी-साहित्य १२.रेखाचित्र १३.एकांकी १४.पत्र-साहित्य १५.काव्य आदि। साहित्यिक विधाओं के विकास पर बारिकी से अनुसंधान कीया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा की हिंदी साहित्य में इन नई साहित्यिक विधाओं के विकास में अनुवाद ने सबसे महत्व पूर्ण भूमिका निभाई हैं। परंतू आज भी अनुवाद को उसके कार्य के अनुसार हिंदी साहित्य में महत्व नहीं दिया जाता फिर भी अनुवाद अपना कार्य निरंतर रुप करता रहेगा।
उपन्यास : -
इसमें कोई संदेह नहीं की उपन्यास हिंदी साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। इसका एक कारण यह भी है कि हिंदी उपन्यास के विकास की प्रक्रिया में न केवल हिंदी के मौलिक ग्रंथो का योगदान रहा बल्कि पाश्चात्य देशों मे लिखे महानतम ग्रंथो के अनुवाद हिंदी उपन्यास के विकास में मिल का पत्थर साबित हुए। जितने मौलिक उपन्यास लिखे जा रहें थे उसी के अनुपात में हिंदी अनुवाद का कार्य भी समान रुप में चल रहा था। न केवल पाश्चात्य बल्कि भारतीय भाषाओं से भी हिंदी में कई उपन्यासों का अनुवाद हो रहा था। बंकिमचंद्र, रवींद्रनाथ, बाबू गोपालदास, रमेश्चंद्रदत्त, हाराण्चंद्र, चंडीचरण सेन, शरद बाबू, चारुचंद, आदि बंग उपन्यासकारों के उपन्यासों का अधिक अनुवाद हुवा।
कुछ उर्दू और संस्कृत उपन्यासों के अनुवाद भी हुए जैसे – ’ठगवृतांतमाल’ ’पुलिसवृतांतमाल’ ’अकबर’ ’चित्तौरचातकी’ ’इला’ ’प्रमीला’ ’जया’ और ’मधुमालती’आदि उपन्यासों का अनुवाद किया।उदाहण स्वरुप हम कुछ उपन्यासों के अनुवाद की छोटी सूची हम निम्न रुप से देख सकते है।
अनु.क्र
मूल lekhak
उपन्यास
अनुवादक
१.
रमेश्चनद्र
बंग विजेता
गदाधरसिंह(१८८६)
२.
बंकिमचन्द्र
दुर्गेशनन्दिनी
गदाधरसिंह(१८८२),राजसिंह,इंदरा रानी, युगलांगुर,प्रतापनारायण मिश्र
३.
दामोदर मुकर्जी
मृण्मयी
राधाचरण गोस्वामी
४.
स्वर्ण कुमारी
दीप निर्वाण
मुंशी हरितनारायण लाल
इतने ही नहीं अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रशियन, जैसी पाश्चात्य भाषाओं के साथ ही तमिल, तेलगू, मरठी आदि भारतीय भाषाओं से भी अनुवाद प्रस्तूत हुए। जिनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण हैं।
नाटक : -
बाबू रामकृष्ण वर्मा द्वारा ’वीरनार’,’कृष्णाकुमा’ और ’पद्मावत’ इन नाटकों का अनुवाद हुवा। बाबू गोपालराम ने ’ववी’, ’वभ्रुवाह’, ’देशदशा’, ’विद्या विनोद’ और रवींद्र बाबू के ’चित्रांगदा’ का अनुवाद किया, रुपनारायण पांण्डे ने गिरिश बाबू के ’पतिव्रता’ क्षीरोदप्रसाद विद्यावियोद के ’खानजहाँ’ दुर्गादास ताराबाई, इन नाटकों के अनुवाद प्रस्तुत किए।
अंग्रेजी नाटकों के अनुवाद भी इसी कालखंड मे निरंतर रुप से चल रहे थे। जिन में ’रोमियो जूलियट’ का ’प्रेमलिला’ नाम से अनुवाद हुवा। ’ऎज यू लाईक इट’ और ’वेनिस का बैक्पारी’, उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी के भाई मथुरा प्रसाद चौधरी ’ए मौकबेथ’ का ’साहसेंद्र साहस’ के नाम के अनुवाद किया। हैमलेट का अनुवाद ’जयंत’ के नाम से निकला जो वास्तव में मराठी अनुवाद से हिंदी मे अनूदित किया गया था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में नाटकों का अधिक अनुवाद हिंदी में दिखाई देता है। विद्यासुंदर (संस्कृत “चौरपंचाशिका” के बंगला-संस्करण का अनुवाद), रत्नाअवली, धनंजय विजय (कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का), कर्पूरमंजरी (सट्टक, के संचन कवि-कृत नाटक का अनुवाद) अगर हिंदी नाटक में भारतेंदु हरिश्चंद्र के कालखंड में किन अनूदित नाटकों ने महत्व पूर्ण कार्य किया तो उसे हम निम्न रुप से देख सकते है। कुछ नाटकों के अनुवाद दो अनुवादकों ने भी किए है।
“संदर्भ”[1]
अनु.क्र
मूल नाटककार
नाटक
अनुवादक
१
भवभूति
उत्तररामचरित
देवदत्त तिवारी(१८७१),
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८६)
२
भवभूति
मालतीमाधव
लाला शालीग्राम(१८८६),लाला सीताराम (१८९५),
३
भवभूति
महावीरचरीत
लाला सीताराम(१८९८)
४
कालिदास
अभिज्ञानशाकुन्तल
नन्दलाल विश्वनाथ दूबे (१८८८)
५
कालिदाक
मालविकाग्निमित्र
लाला सीताराम (१८९८)
६
कृष्णमित्र
प्रबोधचन्द्रोदय
शीतलाप्रसाद(१८७६), आयोध्याप्रसाद चौदरी १८८५
७
शुद्रक
मृच्छकटिक
गदाअधर भट्ट(१८८०),लाला सिताराम
८
भट्ट नारायण
विणीसंहार
ज्वालाप्रसाद सिंह(१८९७)
९
हर्ष
रत्नावली
देवदत्त तिवारि(१८७२),
१०
माइकेल मदुसूदन
पद्मावती
बालकृष्ण भट्ट(१८७५)
११
माइकेल मदुसूदन
शर्मिष्ठा
रामचरण शुक्ल(१८८०)
१२
माइकेल मदुसूदन
कृष्णमुरारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१३
मनमेहन वसू
सती
उदितनारायण लाल(१८८०)
१४
राजकिशोर दे
पद्मावति
रामकृष्ण वर्मा(१८८६)
१५
द्वारिकानाथ गांगुली
विर नारी
रामकृष्ण वर्मा(१८९९)
१६
शेक्सपियर
मरचेंट ऑफ् वेनिस
“वेनिस का व्यापारी” – आर्या १८८८
१७
शेक्सपियर
द कॉमेडी ऑफ् एरर्स
“भ्रमजालक” – मुशी इमदाद अली, “भूलभुलैया” – लाला सिताराम
१८
शेक्सपियर
ऎज यू लाइक इट
“मनभावन” – पुरोहित गोपीनाथ, १८९६
१९
शेक्सपियर
मैकबेथ
“साहसेंद्र साहस” मथुराप्रसाद उपाध्याय,१८९३
२०
एडीसन
केटो
कृतान्त(१८७६)
संस्कृत नाटकों का हिंदी में अनुवाद होता रहा हैं। संस्कृत नाटकों के अनुवाद में रायबहादुर लाला सीताराम बी.ए. का कार्य अधिक महत्व पूर्ण रहा। नागानंद ने भी, मृच्छकटिक, महावईरचरित, उत्त्ररामचरित, मालतीमाधव, मालविकाग्निमित्र आदि नाटकों का अनुवाद सफल रुप से किया। यह नाटक अनुवाद होकर भी इन नाटकों की भाषा सरल और सादी और आडंबर शून्य हैं। पं. ज्वालाप्रसाद मिश्र ने वेणीसंहार और अभिज्ञान शकुंतला के हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किए। सत्य नारायण कविरत्न ने भहूति के उत्तर राअमचरित का अनुवाद किया और मालति माधव का अनुवाद भी किया। इस प्रकार अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत बंगाला अदि भाषाओं से हिंदी मे भारि मात्रा में अनुवाद किया। जिसने हिंदी नाटक साहित्य के विकास में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। आज भी भारी मात्रा में मराठी, गुजराती, पारसी आदि अन्य भारतीय भाषाओं से हिंदी में नाटकों का अनुवाद हो रहा हैं।
मौलिक हिंदी नाटक और अनूदित हिंदी नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो हिंदी नाटकों के अनुवाद की भूमिका अधिक सशक्त रुप से सामने आ सकती है। जिसमें शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद को अधिक सफलता मिली। हिंदी नाटकों के तकनिक के विकास में शेक्सपियर के नाटकों के अनुवाद का अधिक उपयोग हुवा। साहित्यिक अनुवादों में हिंदी में अधिकतर नाटकों का अनुवाद हुवा है।
२. निबंध : -
निबंध यह विधा हिंदी साहित्य में पूर्ण रुप से स्वर्जित सम्पत्ति है। यह सर्वता खड़ी बोली गद्य कि देन है साथ ही इसकी प्रेरणा पश्चिमी है। हिंदी गद्य का यह आधुनिक रुप है। फ्रांस के “मिकेल मौंटेन” को निबंध साहित्य के जन्मदाता माने जाते है। हिंदी गद्य साहित्य के विकास के समय अंग्रेजी में भी निबंध विधा अधिक विकसित नहीं हुई थी इस कारण इस विधा का विकास हिंदी में मौलिक रुप में ही अधिक गति से हुआ।
निबंध लेखन के प्रारंभिक काल में ही निबंध को रास्ता दिखलाने वाले दो प्रमुख ग्रंथ हिंदी में अनुवाद होकर प्रकाशित हुए।
१. बेकन विचार रचनावली (अंग्रेजी के पहले निबंधकार) के
अंग्रेजी निबंधोंका अनुवाद।
२. विष्णूशास्त्री चिपलूणकर द्वारा लिखित “निबंधमालादर्श” मरठी से हिंदी में अनुवाद किया गया।
यह दोनो भी ग्रंथ अपनी भाषा के महत्व पूर्ण ग्रंथ हैं। यह दोनों ग्रंथ हिंदी निबंध के विकास में महत्व पूर्ण रहें। इसके बाद कई हिंदी साहित्यकारों ने पत्र-पत्रिकाओं में मौलिक निबंध लिखना आरंभ किया। लेकिन आज भी कई भाषाओं से हिंदी में निबंधों का अनुवाद किया जाता हैं।
३. यात्रा साहित्य : -
मनुष्य हमेशा से ही घुम्मकड प्रवृत्ति का रहा है। लेकिन केवल एक जगह से दूसरी जगह धुमने से यात्रा साहित्य नहीं लिखा जाता। कुछ यात्रा प्रेमी या घुम्मकड अपनी –अपनी मनोवृत्ती में साहित्यिक भी होते हैं। जो निसंग भाव से भ्रमण भी करते है और निसर्ग, भिन्न-भिन्न सम्स्कृतियों, समाज, धर्म, आदि से प्रेरणा लेकर साहित्य काभी निर्माण भी करते हैं। जिसमें फाहियान, हेंगसीग, इत्संग, इब्नबतूता, अल्बरुनी, मार्को पोलो, हैवर्नियर आदि को प्रमूख रुप से देख सकते हैं।
इन पाश्चात्य यात्रा वृतांतो का भारी मात्रा में हिंदी में अनुवाद हुवा। जिससे हिंदी में यात्रा साहित्य के विकास में योगदान दिया।
४. डायरी साहित्य : -
डायरी साहित्य विधा हिंदि को पाश्चात्य देशों की देन हैं जिसे भारतीय लेखकोंने अपनी-अपनी शैली में ढाल कर अपनाया है। “महात्मा गांधी के प्रभाव से भारत में डायरी लेखन का प्रवर्तन जीवन साधन के माध्यम के रुप में हुआ।”[2] महात्मा गांधी की डायरी का हिंदी अनुवाद श्रीराम नारायण चौधरी द्बारा अनूदित होकर हिंदी साहित्य में आया। जिसके बाद इस डायरी का अनुवाद अन्य भारतीय और पाश्चात्य भाषाओं में भी होता रहा। इससे कुछ पहले टॉलस्टाय की डायरी का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुवा था। जिससे प्रेरणा लेकर अनेक हिंदी लेखकों का झुकाव कलात्मक डायरी लेखन की ओर हुआ। इसके उपरांत “महादेव भाई की डायरी” का मूल गुजराती से हिंदी में अनुवाद हुवा है। इसी प्रकार की एक डायरी “मनुबहन गांधी” नामक डायरी गुजरती से हिंदी में प्रकाशित हुई।
डायरी लेखन की शैली में विशिष्टता लाने का कार्य भी अनुवाद ने ही किया जिसमें विषय वस्तू के गंभीर विश्लेषण और विस्तार की दृष्टि से “भारत विभाजन की कहानी” महत्वपूर्ण डायरी है। जो मूल रुप में अंग्रेजी ‘maim lik gav ahi’ अहि हिंदी में यह १९४७ में ’एलेन केंपबेल जॉनसन’ ने लिखी है जो लॉर्ड माउंटबेटन के प्रेस अटैची थे।
देखा जाए तो अनुवादने हिंदी साहित्य में डायरी लेखन विधा को हिंदी साहित्य में एक साहित्यिक विधा के रुप में प्रतिस्थापित करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई है।
५. इंटरव्यू साहित्य (साक्षात्कार) : -
एक साहितिक विधा के रुप में रेखाचित्र और रिर्पोताज की तरह हिंदी को यह साहित्यिक विधा पश्चिम की ही देन है। हिंदी में इस विधा के विकास का श्रेय ’श्री चंद्रभान’ को जाता है, लेकिन हिंदी में इस विधा का सूत्रपात ’पं.बनारसीदास चर्तुवेदी’ को जाता है। “आज विविध क्षेत्रों की पत्र-पत्रिकाओं में और स्वतंत्र पुस्तकों द्वारा हिंदी में इंटरव्यूव साहित्य से परिचित हो चुका है और अनुदित हो रहा हैं।”[3] हिंदी में इसी विधा को साक्षात्कार ’भेंट’ ’भेटवार्ता’ के रुप में देखा जाता है। हिंदी में साक्षात्कार केवल साहित्य में ही अनुवाद नहीं हो रहें बल्कि टि.व्ही चैनलों पर भी व्हिडिओ रुप में भी मोटे रुप में अंग्रेजी और अन्य भाषाओं अनुवाद हो रहें है।
[1] हिंदी साहित्य का इतिहास पृश्ठ - ४८२
[2] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
[3] हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ४८६
३. हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास हरवंशलाल शर्मा पृष्ठ संख्या - ३०९
६. एकांकी : -
यह कहना भ्रामक होगा की भारतीय साहित्य में एकांकी नहीं थी। “जैसे हम देखते है उत्तर भारत की रामलीला, बंगाल की यात्रा, ब्रजभूमी की रासलीला, महराष्ट्र की ललित कला, गुजरात का बवाई, राजस्थान का कठपुतली और नौटंकी के रुपों को देखा जा सकता हैं।”[1] संस्कृत में तो एकांकि के छह रुप दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रुप से हिंदी में एकंकी का अधिक विकास भारतेंदु युग में हुआ। जिसने राष्ट्रीय एकता की धारा, पुराणिक धारा, हास्य, व्यंगप्रधान धारा निर्माण हुई।
इसी धारा में हिंदी के मौलिक रचनाकारों ने भी एकांकीयों का अनुवाद किया जिसमें प्रेमचंदजी का नाम भी आता है। हिंदी एकांकी के विकास काल में जी.पी श्रीवास्तव ने ’मौलियर’ के कई एकांकीयों के कई सफल अनुवाद किये। श्रीक्षेमानंद राहत ने टॉल्सटाय के कुछ छोटे एकांकीयों का अनुवाद किया। जिसमें “कलवार् की करतूत” मुख्य है। श्री रुपनारायण पांण्डेय ने रविबाबू के एकंकियों का अनुवाद अधिक किया। द्विवेदी युग में एकांकी के तकनीक में अधिक विकास हुवा जिसका एक कारण अंग्रेजी से अधिक अनुवाद होने लगे थे। इन अनुवादों का प्रभाव हिंदी के मौलिक एकांकीयों के तकनीक में अधिक विकास करने के लिए हुवा। “सृष्टी का आरंभ” जार्ज बर्नाड शा का अनुवाद है। एकंकी का विकास भारतेंदू युग के साथ ही द्विवेदी युग में भी हुआ जिसमें अनुवादकों का अधिक योगदान रहा। द्विवेदी युग के प्रमुख रचनाकारों में जी.पी श्रीवास्तव का नाम पहले आता है। जिन्होंने अधिकतर एकांकीयों का अनुवाद किया हैं। हिंदी एकांकी के विकास में १९३० का वर्ष महत्व पूर्ण रहा। इस वर्ष में कई अंग्रेजी एकांकीयों का हिंदी में अनुवाद हुआ। जिससे अंग्रेजी एकांकी ने हिंदी एकांकी को अनुवाद के माध्यम से अपने रंग में ढाला।
२. पत्र साहित्य : -
पत्र-साहित्य में पाश्चात्य साहित्य में अधिकतर विद्वानों ने लिखे पत्रों को संकलन कर उन्हें प्रकाशित किया जाता था। हिंदी में भी यह प्रथा चली कई विद्वानों के पत्रों के संकलन प्रकाशित हुए। हिंदी में इस विधा के विकास में पं.जवाहरलाल नेहरु के पत्रों का प्रसिद्ध संकलन “पिता के पत्र पुत्रि के नाम” १९३१ में प्रकाशित हुआ। यह पत्र मुख्य रुप से अंग्रेजी में इंदिरा गांधी को लिखे गये थे। जिसका अनुवाद मुंशी प्रेमचंद ने किया। यह अनुवाद हिंदी पत्र साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय हुवा। और इसी के प्रेरणा से लोगों में विविध विषयों के पत्रों को प्रकाशित करने का उत्साह जगा। उनके “ए बंच आफ ओल्ड लेटर्स” भी अनुवाद १९६० में “कुछ पुरानि चिठ्ठियां” नाम से अनुदित हुआ। नाम से अनुदित हुआ।
पत्र लेखन एक सशक्त और सृजनशिल कला है। जिसका प्रभाव व्यक्ति के चरित्र पर गंभीर रुप से दिखाई देता है। कई महापुरुषों ने कई व्यक्तियों की जीवन धारा बदल दी हैं। जैसे : - लोकमान्य तिलक, शरदचंद्र, रविंद्रनाथ, अरविंद, सुभाषचंद्र बोस, टॉलस्टाय, रोम्यां रोलाँ, न्सन, मार्क्स, शैली, किट्स, आदि के पत्र आज भी प्रभावित करते हैं। महापुरुषों की इस शैली को बरकरार रखने के लिए कई विद्वानों एवं महापुषों के पत्रों का अनुवाद निरंतर रुप से किया गया।
३. कहानी : -
हिंदी साहित्य में कहानी लेखन की परंपरा काफी पूरानी रही है। लेकिन हिंदी साहित्य में कहानी लेखन के विकास में हिंदी अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण है। “संवत १६६० के लगभग किसी लेखक ने ब्रजभाषा गद्य में “नासिकोपाख्यान” गंथ में संकृत-साहित्य में उपल्ब्ध काहनियों का अनुवाद किया।”[2] दंवत १७६७ में सूरत मिश्र ने संस्कृत के वेताल “पंचविश्तिका” की कहानीयों का अनुवाद ब्रजभाषा गद्य में “वेताल पच्चीसी” के नाम से किया था। इसके बाद लल्लु लाल, सदल मिश्र, और इंशाअल्ला खां के कहानी ग्रंथ हिंदी में माने जाने चाहिए। “किशोरिलाल गोस्वामी की पहली कहानी “इंन्दूमती” भी छायानुवाद की देन है।”[3] इसके बाद भी पत्र-पत्रिकाओं में भी कई अनुवाद नियमित रुप से प्रकाशित होते रहे हैं। आज की पत्र-पत्रिकाओं में सिधे पाश्चात्य भाषाओं से कहानीयों का हिंदी अनुवाद हो रहा हैं।
४. आत्मकथा : -
किसी भी नवजागृत देश और साहित्य की प्रेरणा के मूल स्रोत कुछ महापुरुष होते है। राष्ट्रीयता की एकता के लिए उनके उपदेश और संदेश प्रेरणादायी होते है जिनका उल्लेख और संदेश प्रेरणादायी होता है जिनका कार्यों का उल्लेख उनकी आत्मकथाओं में होता है। केवल अपने राष्ट्र के ही नहीं अन्य देशों के महापुरुषों की आत्मकथा भी प्रेरणादायी होती है। हिंदी साहित्य में आत्मकथाऎं काफी देर बाद लिखी गई। राजेंद्र बाबू की आत्मक्था को छोड कर अन्य अधिकतर आत्मकथाएँ हिंदी अनुवाद के माध्यम से सुलभ है। माहत्मा गांधी की आत्मकथा गुजरती में लिखी है। इसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने १९२७ में किया। जवाहरलाल नेहरु की आत्मकथा “मेरी कहानी” अंग्रेजी में लिखी है। जिसका हिंदी अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय ने किया है। सुभाष चंद्र बोस की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद “तरुण के स्वप्न” का हिंदी अनुवाद श्रीगिरीशचंद्र जोशी ने किया। डॉ.सर्वपल्ली रधाकृष्णण की आत्मकथा “सत्य की खोज” के अनुवादक श्री शालिग्राम (१९४८) ने किया है। अनुवाद ने ही कई भाषाओं में “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को जन्म दिया है। एक तरह से देखा जाए तो अनुवाद ने ही “आत्मकथा” इस साहित्यिक विधा को केवल हिंदी में ही नहीं बल्कि दुनया की अधिकतर भाषाओं में प्रतिष्ठापित करने का काम किया हैं। यह कृतियाँ जैसे महान हैं वैसे ही इनके अनुवाद भी महान हुए है।
भारत ही नहीं विश्व के महापुरुषों ने अपनी आत्मकथा अपनी भाषा में लिखी जिसका अनुवाद करना ही सभी भाषाओं के पाठकों की माँग बढती गई। आज भी दूसरी भाषाओं से उपन्यासों के बाद अधिकतर आत्मकथाओं का ही अनुवाद होता हैं। मराठी में लिखी गई दलित साहित्य में अधिकतर आत्मकथाओं का हिंदी में अनुवाद हो चूका हैं। जिसमें दया पवार, शरण कुमार लिंबाले, नामदेव ढसाल आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों का अनुवाद हो चुका हैं। इसके उपरांत अन्य भारतीय भाषाओं में लिखे दलित साहित्य की आत्मकथाओं का अनुवाद भी नियमित रुप से हो रहा हैं।
जीवनी, रेखाचित्र, अलोचना, और साथ ही कविता, गजल,नई कविता आदिका के विकास मे भी अनुवाद की महत्व पूर्ण भूमिका रही है।
[2] हिंदी कहानी का सफर – रमेषचन्द्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०३
[3] हिंदी कहानी का सफर – रमेश् चंद्र शर्मा पृष्ठ संख्या - ४०९
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