कांबले प्रकाश अभिमन्यू दि – ३१-०३-०८
एम.फिल.हिंदी अनुवाद
जे.एन.यू.
नई दिल्ली -६७
अनुवाद की परिभाषाएं
(Translation Definition)
अनुवाद संबंधी सिद्धांतों पर स्वतंत्र ग्रंथों का लेखन वस्तुत्: बीसवी शताब्दी में प्रारंभ हुवा। इसी शताब्दी के बौरान साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अनुवाद पर लेखों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन्हीं भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में अनुवाद की कई परिभाषाओं को जन्म दिया। कई परिभाषाओं पर सवाल भी उठाए गए तो कुछ परिभाषाओं को मान्यताएं भी मिली लेकिन आज भी अनुवाद की कोई एक परिभाषा नहीं मिलती है। परिभाषाओं पर विचार किया जाए तो अनुवाद की परिभाषा भाषा वैज्ञानिकों ने भी दी है और साहित्यकारों(कवियों) ने भी दी है।
भारतीय अनुवाद सिधांतकारों ने भी अनुवाद की परिभाषा दी है।
१. Dostert : - Meaning in our view is property of a language. An SL text has an SL meaning, and a TL text has a TL meaning.
डॅअ स्टर्ट : - “हमारे अर्थ विचार में भाषा का गुण है। किसी भी स्त्रोत भाषा के पाठ का अर्थ अपना होता है और लक्ष्य भाषा के पाठ का अर्थ भी अपना होता है।“
2. NIDA : - Translation consists in producing in the receptor language the close natural equivalent to the massage of the source language first in meaning and secondly in style.
नाइडा : - “अनुवाद का संबंध स्त्रोत भाषा के सम्देश का पहले अर्थ और फिर शैली के धरातल पर लक्ष्य भाषा के द्न्कटतम, स्वाभाविक तथा तुल्यार्थक उपादान प्रस्तुत करने से होता है।”
3. J.C.CATFORD : - “The replacement of textual material form one language by equivalent textual material in another language.”
कैटफर्ड : - “अनुवाद एक भाषा के पाठ्परक उपादानों क दूसरी भाषा के रुप में समतुल्यता के सिद्धात के आधार पर प्रतिस्ठापन है।”
4.FORESTEN : - “Translation is the transference of the content of text from one language into another, bearning in maind that we can, always disassociate the content from the forms.
फोर्स्टन : - “एक भाषा में अभिव्यक्त पाठ के भाव की रक्षा करते हुए – जो सदैव संभव नहीं होता – दुसरी भाषा में उतारने का नाम अनुवाद है।“
5.SAMUEL JOHNSON : - To translate is to change into another language retraining the sense.
सॅम्युअल जॅ न्सन : - “अनुवाद मुल भावों की रक्षा करते हुए उसे दूसरी भाषा में बदल देना है।”
6.JOHN CONINGTON : - A translation ought to endeavour not only to say what his author has said, but to say it as he said it.
जॅअन कॅअन्गटन :- “अनुवादक को उसके अनुवा का तो प्रयास करना ही है, किंतु जिस ढंग से कहा है उसके निर्वाह का भी प्रयाक सरना चाहिए।”
7.MATHEW ARNOLD : - A translation shoul affect as in the same way as the original may be supposed to have affected its first hearers.
मैथ्यू अऍर्नाल्ड : - “अनुवाद ऎसा होना चाहिए कि उसका वही प्रभाव पडे जो वूल का उसके पहले श्रोताओं पर पडा होगा। ”
8.WILLIAM KUPAR : - Fidelity indeed is of very essence of translation and the term itself implies it.
विलियम कपूर : - “अनुवाद की निष्ठा ही उसकी आत्मा है और फिर निष्ठा का अर्थ भी तो यही है।”
9.ARL RSKOMAN : - “YOUR AUTHOR ALWAYS WILL BE BEST ADVICE. Fall when he falls and when he rises rise”.
अर्ल रस्कोमन : - “ मूल लेखक का अनुसरण करना सर्वोत्तम है, उकीके शाथ गिरो, उसी के साथ उठो।”
10.ALEKZENDER POPE : - The fire of the poem is what the translator sould principally regarded as it is most likely to expire in his managing.
कविता की मूल चेतना अथवा उपमा की ओर ही अनुवाद का सर्वाधिक ध्यान होना चाहिए, नहीं तो वह अनुवाद के दौरान ही नष्ट हो जाएगी।”
11.ALEKZENDER FREZER TITLAR : -“(1) A translation should give a complete transcript of the ideas of the original work.
(2)the style and manner of writing should be pf the same character as that of the original.
एलेक्जेंडर फ्रेजर टिटलर : - “अनुवाद में मूल का संपूर्ण भाव समाहीत होना चाहिए, अनुवाद की शैली तथा लेखन विधि मूल की जैसी होनी चाहिए।”
12.JULIANE HOUSE : - “Translation is the replacement of a text in the source lanuage by a semantically and pragmatically equivalent text in the trget language…translation oral texts is called interpretation”.
जुलियन हाऊस : - “स्त्रोत भाषा की पाठ्य सामग्री का लक्ष्य भाषाकी अर्थ तठा व्यवहार की दृष्टि से समतुल्य पाथ्यसामग्रि से प्रतिस्थापन है…मौखिक, सामग्री का अनुवाद आशु अनुवाद कहलाता है।”
13.BASU : - “The word ‘Anuvad’ means repetation by way of explanation, illustration or corroboration, that is to say when a speaker demonstrates for some special purpose, a proposition which had already been demonstrated beore, that is called ‘ANUVAD’. ”
( Ashtadhyayi of panini, Vol 1 page 308 )
14.APTE : - (आपटे :- संस्कृत:अंग्रेजी कोशकार) “(1) repetition by way of explanation, illustration corroboration, (2)Explanatory repletion or reference to what is already mentioned, particularly any portion of the Brahmans, which comments on, illustrates or explains a VIDHI or direction previously laid down and which does not itself lay down any direction corroboration”.
१५. Dr.Jonson : - “अनुवाद का आश्य अर्थ को अक्षुण्ण रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण करना।”
१६. ए.एच.स्मिथ : - “अनुवाद का तात्पर्य अर्थ को यथासंभव बन्नए रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण से है।”
१७.रोमन जैकबसन :- “समस्त प्रकर का अनुवाद कर्य अलोचनात्मक व्याख्या है।”
१८.मेदनिकोवा :- “अनुवाद एक तरह से टीका-टिप्पणी करता है।”
१९ टैंकोक : - “अनुवादक का कार्य द्विमुख होता है – पहले तो उसे मूल के अर्थ का ठीक-ठीक अनुवाद करना होता है और दूक्सरा उसे मूल की शैलीगत विशेषताओं को भी अनुवाद में उतारना है।”
२०.न्यूमार्क : - “अनुवाद एक शिल्प है जिसमें एक भाषा में लिखित संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है।”
२१.हार्टमन तथा स्टार्क : - “मक भाषा या भाषाभेद से दूसरी भाषा या भाषाभेद में प्रतिपाद्य को स्ठानंतरित करने की प्रक्रिया करने की प्रक्रिया या उसके परिणाम को अनुवाद कहते हैं।”
२२.हैलिडे : - “अनुवाद एक संबंध है जो दो या दो से अधिक पाठों के बीच होता है, ये पाठ समान स्थिति में समान प्रकार्य सम्पादित करते हैं। दोनों पाठों का संदर्भ समान होता है और उसे व्यंजित होनेवाला संदेश भी समान है।”
२३.सपिर(sapir) : - “मक सभ्यता के एक प्रतिनिधित्व की दृष्टि से दो भाषाएँ समान नहीं हो सकती। कारण दो सभ्याएँ जिन समाजों में जीती हैं उनके अपने-अपने संसार है। इस प्रकार स्पष्ट है की अनुवद में मात्र भाषिक परिवर्तन नहीं होता, प्रत्युत उसमें सभ्यता का रुपांत्रण औएक्षितहै। रुपांत्रण निकटतम ही संभव है।
२४.प्योडोर एच.सेवरी(Savory) : - “अनुवाद प्राय:उतना ही प्राचीन है जितना मेल लेखन और उसका इतिहास ही भ्व्य हौर जटिल है जितना साहित्य की किसी दूसरी शाखा का।”
२५. Dr.गार्गी गुप्त : - “अनुवाद प्रक्रिया के दो मुख्य अंग होते हैं। अर्थबोध और व्याकरण सम्मत भाषा में स्पष्ट संप्रेषण। इसीलिए अनुवाद की निष्ठा दोवुखी होती है, मूल रचनाकर के प्रति अर्थबोध की दृष्टि से और पाठक के प्रति शुद्ध तठा सुबोध संप्रेषण की दृष्टि से। मूल हचना की जो संकल्पनाएँ अथवा स्थितियाँ औदित रचना के पाठक के लिए अज्ञात अस्पष्ट या दुऋह हों, उनकी व्याख्या, स्पष्छीकरण, अंतर्संबंधों का विवरण देना अत्यावश्यक है। यदि हम पाथक की वुल रचना की मनोहारी भूमि में संदेह ले जाना चाहते हैं तो उसका वह मनोहर स्वरुप यथावत उसके मन में भी प्रतिबिम्बित होना चाहिए।”
२६.जी.गोपीनथन : - “अनुवाद वह द्वंद्वात्मक प्रक्रिया है जिसमें स्त्रोत पाथ की अर्थ संरचना(आत्मा) का लक्ष्य पाठ की शैलीगत संरचना ( शरीर ) द्वारा प्रतिस्थापन होता है।”
२७.Dr.कृष्णकुमार गोस्वामी : - “एक भाषा में व्यक्त भावों या विचारों को दूसरी भाषा में समान और सहज रुप से व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।”
२८.पट्टनायक : - “अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव (अर्थपूर्ण संदेश या संदेश का अर्थ) को एक भाषा-समुदाय से दूसरे भाषा समुदाय में संप्रेषित किया जाता है।”
२९.Dr. सुरेशकुमार :- “एक भाषा के विशिष्ट भाषा भेद के विशिश्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्र्स्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मुल के भाशिक अर्थ, प्र्योग के वैषिश्ट्य से निष्पन्न अर्थ, प्रयुक्ति और शिली की विशिषता, क्विशय वस्तु तथा संबंध सांस्क्रुतिक वैशिश्ट्य को यठासंभव संरक्षित रखते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभ्हाविक रुप से ग्राह्य प्रतित होता है।”
३०.Dr. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव : - “एक भाषा(स्त्रोत भाषा) की पाठ सामग्री में अंतर्निहीत तथ्य का समतुल्यता के सिधांत के आधार पर दूसरी भाषा (लक्ष्य) में संगठनात्मक ऋपंतरण अथवा सर्जनात्मक पुनर्गठन को ही अनुवाद कहा जाता है।”
३१.Dr. भोलानाथ तिवारी : - भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है और अनुवाद है व्न्हीं प्रतिकों का प्रतिस्थापन, अर्थात एक भाषा के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम ( कथनत:और कथ्यत:) समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग। इस प्रकार अनुवाद निकटतम, समतुल्य और सहज प्रतिप्रतीकन है।
एम.फिल.हिंदी अनुवाद
जे.एन.यू.
नई दिल्ली -६७
अनुवाद की परिभाषाएं
(Translation Definition)
अनुवाद संबंधी सिद्धांतों पर स्वतंत्र ग्रंथों का लेखन वस्तुत्: बीसवी शताब्दी में प्रारंभ हुवा। इसी शताब्दी के बौरान साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में अनुवाद पर लेखों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन्हीं भाषा वैज्ञानिक एवं साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में अनुवाद की कई परिभाषाओं को जन्म दिया। कई परिभाषाओं पर सवाल भी उठाए गए तो कुछ परिभाषाओं को मान्यताएं भी मिली लेकिन आज भी अनुवाद की कोई एक परिभाषा नहीं मिलती है। परिभाषाओं पर विचार किया जाए तो अनुवाद की परिभाषा भाषा वैज्ञानिकों ने भी दी है और साहित्यकारों(कवियों) ने भी दी है।
भारतीय अनुवाद सिधांतकारों ने भी अनुवाद की परिभाषा दी है।
१. Dostert : - Meaning in our view is property of a language. An SL text has an SL meaning, and a TL text has a TL meaning.
डॅअ स्टर्ट : - “हमारे अर्थ विचार में भाषा का गुण है। किसी भी स्त्रोत भाषा के पाठ का अर्थ अपना होता है और लक्ष्य भाषा के पाठ का अर्थ भी अपना होता है।“
2. NIDA : - Translation consists in producing in the receptor language the close natural equivalent to the massage of the source language first in meaning and secondly in style.
नाइडा : - “अनुवाद का संबंध स्त्रोत भाषा के सम्देश का पहले अर्थ और फिर शैली के धरातल पर लक्ष्य भाषा के द्न्कटतम, स्वाभाविक तथा तुल्यार्थक उपादान प्रस्तुत करने से होता है।”
3. J.C.CATFORD : - “The replacement of textual material form one language by equivalent textual material in another language.”
कैटफर्ड : - “अनुवाद एक भाषा के पाठ्परक उपादानों क दूसरी भाषा के रुप में समतुल्यता के सिद्धात के आधार पर प्रतिस्ठापन है।”
4.FORESTEN : - “Translation is the transference of the content of text from one language into another, bearning in maind that we can, always disassociate the content from the forms.
फोर्स्टन : - “एक भाषा में अभिव्यक्त पाठ के भाव की रक्षा करते हुए – जो सदैव संभव नहीं होता – दुसरी भाषा में उतारने का नाम अनुवाद है।“
5.SAMUEL JOHNSON : - To translate is to change into another language retraining the sense.
सॅम्युअल जॅ न्सन : - “अनुवाद मुल भावों की रक्षा करते हुए उसे दूसरी भाषा में बदल देना है।”
6.JOHN CONINGTON : - A translation ought to endeavour not only to say what his author has said, but to say it as he said it.
जॅअन कॅअन्गटन :- “अनुवादक को उसके अनुवा का तो प्रयास करना ही है, किंतु जिस ढंग से कहा है उसके निर्वाह का भी प्रयाक सरना चाहिए।”
7.MATHEW ARNOLD : - A translation shoul affect as in the same way as the original may be supposed to have affected its first hearers.
मैथ्यू अऍर्नाल्ड : - “अनुवाद ऎसा होना चाहिए कि उसका वही प्रभाव पडे जो वूल का उसके पहले श्रोताओं पर पडा होगा। ”
8.WILLIAM KUPAR : - Fidelity indeed is of very essence of translation and the term itself implies it.
विलियम कपूर : - “अनुवाद की निष्ठा ही उसकी आत्मा है और फिर निष्ठा का अर्थ भी तो यही है।”
9.ARL RSKOMAN : - “YOUR AUTHOR ALWAYS WILL BE BEST ADVICE. Fall when he falls and when he rises rise”.
अर्ल रस्कोमन : - “ मूल लेखक का अनुसरण करना सर्वोत्तम है, उकीके शाथ गिरो, उसी के साथ उठो।”
10.ALEKZENDER POPE : - The fire of the poem is what the translator sould principally regarded as it is most likely to expire in his managing.
कविता की मूल चेतना अथवा उपमा की ओर ही अनुवाद का सर्वाधिक ध्यान होना चाहिए, नहीं तो वह अनुवाद के दौरान ही नष्ट हो जाएगी।”
11.ALEKZENDER FREZER TITLAR : -“(1) A translation should give a complete transcript of the ideas of the original work.
(2)the style and manner of writing should be pf the same character as that of the original.
एलेक्जेंडर फ्रेजर टिटलर : - “अनुवाद में मूल का संपूर्ण भाव समाहीत होना चाहिए, अनुवाद की शैली तथा लेखन विधि मूल की जैसी होनी चाहिए।”
12.JULIANE HOUSE : - “Translation is the replacement of a text in the source lanuage by a semantically and pragmatically equivalent text in the trget language…translation oral texts is called interpretation”.
जुलियन हाऊस : - “स्त्रोत भाषा की पाठ्य सामग्री का लक्ष्य भाषाकी अर्थ तठा व्यवहार की दृष्टि से समतुल्य पाथ्यसामग्रि से प्रतिस्थापन है…मौखिक, सामग्री का अनुवाद आशु अनुवाद कहलाता है।”
13.BASU : - “The word ‘Anuvad’ means repetation by way of explanation, illustration or corroboration, that is to say when a speaker demonstrates for some special purpose, a proposition which had already been demonstrated beore, that is called ‘ANUVAD’. ”
( Ashtadhyayi of panini, Vol 1 page 308 )
14.APTE : - (आपटे :- संस्कृत:अंग्रेजी कोशकार) “(1) repetition by way of explanation, illustration corroboration, (2)Explanatory repletion or reference to what is already mentioned, particularly any portion of the Brahmans, which comments on, illustrates or explains a VIDHI or direction previously laid down and which does not itself lay down any direction corroboration”.
१५. Dr.Jonson : - “अनुवाद का आश्य अर्थ को अक्षुण्ण रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण करना।”
१६. ए.एच.स्मिथ : - “अनुवाद का तात्पर्य अर्थ को यथासंभव बन्नए रखते हुए अन्य भाषा में अंतरण से है।”
१७.रोमन जैकबसन :- “समस्त प्रकर का अनुवाद कर्य अलोचनात्मक व्याख्या है।”
१८.मेदनिकोवा :- “अनुवाद एक तरह से टीका-टिप्पणी करता है।”
१९ टैंकोक : - “अनुवादक का कार्य द्विमुख होता है – पहले तो उसे मूल के अर्थ का ठीक-ठीक अनुवाद करना होता है और दूक्सरा उसे मूल की शैलीगत विशेषताओं को भी अनुवाद में उतारना है।”
२०.न्यूमार्क : - “अनुवाद एक शिल्प है जिसमें एक भाषा में लिखित संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा के उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है।”
२१.हार्टमन तथा स्टार्क : - “मक भाषा या भाषाभेद से दूसरी भाषा या भाषाभेद में प्रतिपाद्य को स्ठानंतरित करने की प्रक्रिया करने की प्रक्रिया या उसके परिणाम को अनुवाद कहते हैं।”
२२.हैलिडे : - “अनुवाद एक संबंध है जो दो या दो से अधिक पाठों के बीच होता है, ये पाठ समान स्थिति में समान प्रकार्य सम्पादित करते हैं। दोनों पाठों का संदर्भ समान होता है और उसे व्यंजित होनेवाला संदेश भी समान है।”
२३.सपिर(sapir) : - “मक सभ्यता के एक प्रतिनिधित्व की दृष्टि से दो भाषाएँ समान नहीं हो सकती। कारण दो सभ्याएँ जिन समाजों में जीती हैं उनके अपने-अपने संसार है। इस प्रकार स्पष्ट है की अनुवद में मात्र भाषिक परिवर्तन नहीं होता, प्रत्युत उसमें सभ्यता का रुपांत्रण औएक्षितहै। रुपांत्रण निकटतम ही संभव है।
२४.प्योडोर एच.सेवरी(Savory) : - “अनुवाद प्राय:उतना ही प्राचीन है जितना मेल लेखन और उसका इतिहास ही भ्व्य हौर जटिल है जितना साहित्य की किसी दूसरी शाखा का।”
२५. Dr.गार्गी गुप्त : - “अनुवाद प्रक्रिया के दो मुख्य अंग होते हैं। अर्थबोध और व्याकरण सम्मत भाषा में स्पष्ट संप्रेषण। इसीलिए अनुवाद की निष्ठा दोवुखी होती है, मूल रचनाकर के प्रति अर्थबोध की दृष्टि से और पाठक के प्रति शुद्ध तठा सुबोध संप्रेषण की दृष्टि से। मूल हचना की जो संकल्पनाएँ अथवा स्थितियाँ औदित रचना के पाठक के लिए अज्ञात अस्पष्ट या दुऋह हों, उनकी व्याख्या, स्पष्छीकरण, अंतर्संबंधों का विवरण देना अत्यावश्यक है। यदि हम पाथक की वुल रचना की मनोहारी भूमि में संदेह ले जाना चाहते हैं तो उसका वह मनोहर स्वरुप यथावत उसके मन में भी प्रतिबिम्बित होना चाहिए।”
२६.जी.गोपीनथन : - “अनुवाद वह द्वंद्वात्मक प्रक्रिया है जिसमें स्त्रोत पाथ की अर्थ संरचना(आत्मा) का लक्ष्य पाठ की शैलीगत संरचना ( शरीर ) द्वारा प्रतिस्थापन होता है।”
२७.Dr.कृष्णकुमार गोस्वामी : - “एक भाषा में व्यक्त भावों या विचारों को दूसरी भाषा में समान और सहज रुप से व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।”
२८.पट्टनायक : - “अनुवाद वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्थक अनुभव (अर्थपूर्ण संदेश या संदेश का अर्थ) को एक भाषा-समुदाय से दूसरे भाषा समुदाय में संप्रेषित किया जाता है।”
२९.Dr. सुरेशकुमार :- “एक भाषा के विशिष्ट भाषा भेद के विशिश्ट पाठ को दूसरी भाषा में इस प्रकार प्र्स्तुत करना अनुवाद है जिसमें वह मुल के भाशिक अर्थ, प्र्योग के वैषिश्ट्य से निष्पन्न अर्थ, प्रयुक्ति और शिली की विशिषता, क्विशय वस्तु तथा संबंध सांस्क्रुतिक वैशिश्ट्य को यठासंभव संरक्षित रखते हुए दूसरी भाषा के पाठक को स्वाभ्हाविक रुप से ग्राह्य प्रतित होता है।”
३०.Dr. रवींद्रनाथ श्रीवास्तव : - “एक भाषा(स्त्रोत भाषा) की पाठ सामग्री में अंतर्निहीत तथ्य का समतुल्यता के सिधांत के आधार पर दूसरी भाषा (लक्ष्य) में संगठनात्मक ऋपंतरण अथवा सर्जनात्मक पुनर्गठन को ही अनुवाद कहा जाता है।”
३१.Dr. भोलानाथ तिवारी : - भाषा ध्वन्यात्मक प्रतीकों की व्यवस्था है और अनुवाद है व्न्हीं प्रतिकों का प्रतिस्थापन, अर्थात एक भाषा के स्थान पर दूसरी भाषा के निकटतम ( कथनत:और कथ्यत:) समतुल्य और सहज प्रतीकों का प्रयोग। इस प्रकार अनुवाद निकटतम, समतुल्य और सहज प्रतिप्रतीकन है।
6 comments:
Nice....
सुंदर
Amazed baby
Nice
Thanks
शोधार्थी और अनुवादक के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण बात है ।
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