Monday, January 5, 2009

Hindi poem

इबादत

जो आदमी औरों से प्यार से बोले
भुला के भेद सभी दिल के राज भी खोले
उसी पे उस्के रहम की बरसतीं है बारिश
जो हंस के कष्ट सहे फिर भी कुछ नहीं बोले।
चलो भगवान को ऐसे भी मनाया जाये
किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये
जिनकी आखों से सच्चाई की चमक आती है
जिनके होंठों से मुहब्बत की दुआ आती है
ऐसे मणिहारों को सीने से लगाया जाये।
जमीर जिनके तआस्सुब ने ढांक रक्खे हैं
और खुदगर्जी के पर्दे भी चढ़ा रक्खे हैं
प्यार से उनके जमीरों को जगाया जाये।
जिस सियासत से गुलामी के अंधेरे आये
देश दर देश पे बरबादी के साये आये
उस सिआसत को मिल जुल के हटाया जाये।
(-अनाम एक पत्रिका से)

वही नहीं
शाम होने पर
पक्षी लौटते है
पर वही नहीं जो गये थे

रात होने पर फिर से जल उठती है
दीपशिखा
पर वहीं नहीं जो कल बुझ गयी थी

सूखी पड़ी नदी भर भर जाती है
किनारों को दुलराता है जल
पर वही नहीं जो
बादल बनकर उड़ गया था
हम भी लौटेंगे
प्रेम में कविता में घर में
जन्मान्तरों को पार कर पर वही नहीं
जो यहाँ से उठकर गये थे-
(कहीं नहीं वहीं – अशोक वाजपेयी)



सबसे सुंदर और भयानक बात यही थी
कि शब्द का अर्थ शब्द ही थे। या की है।

(कहीं नहीं वहीं – अशोक वाजपेयी)

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