मानक हिंदी व्याकरण और रचना
डॉ.हरिवंश तरूण
भाषा का अर्थ.
’भाष् व्यक्तायां वाचि’ - धातु पाठ
वस्तु: व्यक्ति की वाणी ही भाषा है। और, यह भी सत्य है कि मनुष्य की ही वाणी व्यक्त है। उसे लिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। उसका अनुकरण किया जा सकता है। वह सार्थक होता है। उसका विश्लेषण हो सकता है। इन्हीं गुणों के कारण वह विचारों, भावों तथा आकांशाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती है। ’भाषा’ शब्द का निर्माण संस्कृत की ’भाष्’ धातु से हुआ है। इस् अधातु का अर्थ है वाणी की अभिव्यक्ति। वस्तुत: मनुष्य की व्यक्त वाणी ही भाषा है। हाँ, इस वाणी का सार्थक होना भी आवश्यक है। भाषा के माध्यम से मनुष्य के भाव तथा विचार व्यक्त होते है। इसी प्रकार भाषा के माध्यम से व्यक्त भावों एवं विचारों को ग्रहण भी किया जाता है। स्पष्ट हुआ कि भाषा सामाजिक मनुष्यों के बीच भावों तथा विचारों के पारस्पारिक आदान-प्रदान का एक सार्थक माध्यम है।
निम्नांकित विविरण से भाषा का अर्थ और भी स्पष्ट हो सकेगा।
१.भाषा सार्थक ध्वनि-संकेतों का समूह है।
२. भाषा सामाजिक मनुष्यों के बीच पारस्परिक भाव एवं विचार विनिमय का माध्यम है
३.भाषा यादृच्छिक संकेत है। अर्थात ऐसे संकेतों में शब्द और अर्थ में कोई तर्क संगत सम्बन्ध नहीं होता। यथा-खुरपी, ह्ँसुआ, घोड़ा, कौआ आदि।
३.भाषा रूढ़ है। परंपरागत रूप से इसका प्रयोग लोग क्यों करते हैं, इसका कोई कारण वे नहीं दे सकते। किन्तु, स्थायी रूप से इनका प्रयोग करते हैं, करते आ रहे हैं।
४. भाषा का प्रयोग मौखिक तथा लिखित, दोनों रूपों में होता है।
५.अलग-अलग वर्थ अथवा समाज की भाषा के ध्वनि-संकेत एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।
६.भाषा समाज के बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विकास की परिचायिका एवं संवाहिका होती है।
यहाँ कुछ विशिष्ट भाषा-वैज्ञानिको द्वारा दी गई परिभाषाएँ उद्धृत कि जा रही हैं। इनसे भी भाषा के अर्थ को समझने में सुविधा होगी।
१. भाषा सीमित और व्यक्त ध्वनियों का नाम है जिन्हें हम अभिव्यक्ति के लिए संगठित करते है। - क्रोचे
२.भाषा मनुष्यों के बीच संचार-व्यवहार के माध्यम के रूप में एक प्रतीक व्यवस्था है। - वेन्द्रे
३.भाषा मुख्यत: प्रतीकों की श्रवणात्मक व्यवस्था है। - सपिर
४. भाषा यादृच्छिक वाक् प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से मानव समुदाय परस्पर व्यवहार करते है। - ब्लॉक-ट्रेजर
५.भाषा मानव-वाणी है और एक ऐसी सक्रियता जिससे लोग मुख के अवयवों से उच्चरित ध्वनियों के माध्य्म से अपने भाओं और विचारों को अभिव्यक्त करते है - बुजनर
६. मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि-संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं। - डॉ.श्याम सुंदर दास
७. जिन ध्वनि-चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उसको समष्टि रुप से भाषा कहते है। - डॉ.बाबूराम सक्सेना
८. भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या व्यापार को कहते है, जिससे मनुष्य अपने उच्चारणोपयोगी शरीर-अवयओं से उच्चरित किए गए वर्णनात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते है। - दॉ.मंगलदेव शास्त्री
९. उच्चरित ध्वनि-संकितों की सहायता से भाव या विचार की पूर्ण अथवा जिसकी सहायता से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय या सहयोग करते है, उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि-संकेत की प्रणाली को भाषा कहते है। - आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा
१०. भाषा उच्चारण अवयओं से उच्चरित प्राय: यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है, जिसके द्वारा किसी भाषा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते है- डॉ.भोलानाथ तिवारी
सब मिलाकर कहा जा सकता है कि भाषा सामाजिक मनुष्य के भावों एवं विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान का माध्यम है।
Kamble Prakash Abhimannu
JNU, New Delhi-67