इबादत
जो आदमी औरों से प्यार से बोले
भुला के भेद सभी दिल के राज भी खोले
उसी पे उस्के रहम की बरसतीं है बारिश
जो हंस के कष्ट सहे फिर भी कुछ नहीं बोले।
चलो भगवान को ऐसे भी मनाया जाये
किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये
जिनकी आखों से सच्चाई की चमक आती है
जिनके होंठों से मुहब्बत की दुआ आती है
ऐसे मणिहारों को सीने से लगाया जाये।
जमीर जिनके तआस्सुब ने ढांक रक्खे हैं
और खुदगर्जी के पर्दे भी चढ़ा रक्खे हैं
प्यार से उनके जमीरों को जगाया जाये।
जिस सियासत से गुलामी के अंधेरे आये
देश दर देश पे बरबादी के साये आये
उस सिआसत को मिल जुल के हटाया जाये।
(-अनाम एक पत्रिका से)
वही नहीं
शाम होने पर
पक्षी लौटते है
पर वही नहीं जो गये थे
रात होने पर फिर से जल उठती है
दीपशिखा
पर वहीं नहीं जो कल बुझ गयी थी
सूखी पड़ी नदी भर भर जाती है
किनारों को दुलराता है जल
पर वही नहीं जो
बादल बनकर उड़ गया था
हम भी लौटेंगे
प्रेम में कविता में घर में
जन्मान्तरों को पार कर पर वही नहीं
जो यहाँ से उठकर गये थे-
(कहीं नहीं वहीं – अशोक वाजपेयी)
सबसे सुंदर और भयानक बात यही थी
कि शब्द का अर्थ शब्द ही थे। या की है।
(कहीं नहीं वहीं – अशोक वाजपेयी)
One poem on Raj Thakare by ShaShikala Rai
शशिकला राय
राज ठाकरे के नाम प्रार्थना-पत्र
राज ठाकरे मुझे अनुमति दो
मैं खुल कर अपनी जान मुम्बई
के लिए रो सकूँ।
घुट-घुट कर रोयी हूँ
मयूर धर्मदेव और राहुल के लिए करकरे सालसकर कामटे के लिए
बहुत जोर से चीख कर रोना चाहती हूँ
मुम्बई छोड़ चुकी हूँ। राज ठाकरे।
क्या करँ मुम्बई मुझे छोड़ती हो नही?
मैं चाहती हूँ, मैं प्यार कर सकूँ
बनारस लखनू को
अली सरदार ज़ाफरी की तरह
महसूस करती हूँ, कितना कठिन है ख़ुद को बदलना
घायल मुम्बई फिर भी कितनी दिलकश लगती है।
भैया की सात वर्षीय लड़की का टूटा हाथ
तुम्हारी सलामी के लिए उठ रहा है
डरा हुआ बढ़ई
राज ठाकरे जीवेत शरद: शतम
का बोर्ड बना रहा है।
रिक्शे की सीट पर पड़ी लाबारिस लाश
तुम्हारे सजदे में लुढ़्क पड़ी है।
भाषा की रातके देवता तुम खुश क्यों नहीं होते ?
बिना किसी क्षोभ के तख़्तियों के अक्षर बदल गये हैं
धूमिल पागल है, देवता उसे माफ कर दो
और उसे छोड़ो भी
वह अपने किए की सजा पा ही गया
कहता था, भाषा को ठीक करो।
प्रभु भाषा को ठीक होने के कई अवसर आएँगे।
अपनी-अपनी गठ्री उठाए हम लौट जाएँगे
राज ठाकरे बहीं, जिसे तुम हमारा प्रान्त कहते हो
एक वायदा करो प्रभु मुम्बई की देह प्र
कोई खरोच नहीं लगने दोगे।
महाविद्यालयों में द्म तोड़ती मराठी को
फिर नयी सा~म्स दोगे।
विदर्भ के किसानों की मृत्यु का हिसाब लोगे
कौलांजी दुबारा नहीं घटने दोगे
मिल मजदूरों की जमीन प्र महल नहीं बनाओगे
मुम्बई को आतंकवादियों के कहर से बचाओगे।
मुम्बई को अपनी जान कहने का हम नहिं छीनोगे।
इस रिश्ते को अवैध नहीं मानोगे।
तुम्हारे आदेशानुसार प्रभु कोशिश होती
पतिब्रता की तरह केवल-केवल
बनारस को प्यार क्रुँ
उसी की उम्र के लिए करवा का व्रत रखूँ
मुम्बई की छवि भी फ़्रदय के भीतर न लाऊँ
पर इस व्यभिचारी मन का क्या करुँ प्रभु
जो मुम्बई से इश्क़ कर बैठा।
अपनी इसी जान को लम्बी उम्र चाहती हूँ
अपनी जान के लिए जान भी देना चाहती हूँ
मुम्बई के लिए हक अदा करने कि
मोहलत दो प्रभु
पिता जल्दी चले गये। एक ही भाई है
उसकी उम्र दान में दे दो प्रभु
ज़िदगि भर तुम्हारे दानी होने का यश गाऊँगी
मैं किसी राम, ख़ुदा, जीजस को नहीं जानती
एकमेव तुम्ही भगवान हो, हे करुणानिधान
द्या करो। द्या करो। द्या करो।
शशिकला राय
हिंदी विभाग, पुणे विश्वदिद्यालय
पुणे – ४११ ००७
मो. - ०९३२४९७४६५६
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